– सिद्धेश्वर
नज़्म
लिखते हैं , मिटाते हैं !
झूठी कसमें खाते हैं l
चोरी करते हैं सृजन
मौलिक बतलाते हैं l
सामने आता है सच
उसे क्यों झुठलाते हैं ?
करते हैं उल्लू सीधा,
जिन्हें बरगलाते हैं l
झूठे लोग आजकल
हमें बहुत भाते हैं l
सरेआम रहते नंगा
घर में शर्माते हैं l
राह में फूल है तो
राह में कुछ कांटे हैं l
मो: 9234760365
नोट : कलाकृति कॉपीराइट – सिद्धेश्वर