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  • अलका मित्तल

“महेश, मैं सोचता हूँ क्यूँ न हम अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें।” समीर ने महेश के पास बैठते हुए कहा।

“मैं रागिनी बिटिया को अपने घर की बहू बनाना चाहता हूँ।”

“क्या? मैं कुछ समझा नहीं।”

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है। राहुल और रागिनी की शादी हो जायेगी तो हम दोनों एक दूसरे के समधी बन जायेंगे ना।” हँसते हुए समीर ने कहा।

“पागल हुआ है क्या?” तुझे पता है तू क्या कह रहा है ।” हम अच्छे दोस्त है और हमेशा रहेंगे बस…।”

“हमारा रिश्ता भी उतना ही मज़बूत होगा, वादा है मेरा।”

“हम दोनों में कोई बराबरी नहीं है।” लोग क्या कहेंगे? मेरी मामूली सी दुकान और तू इतना बड़ा आफ़िसर ।”

“लेकिन आज जहाँ मैं हूँ वो किसकी बदौलत हूँ । भूला नहीं हूँ और न कभी भूल पाऊँगा।” आँखें गीली थी समीर की।

“घर की हालत इतनी ख़राब थी कि फ़ीस जमा करने के लिए पैसे नहीं होते थे। उस वक्त तूने मेरा साथ दिया।

कई बार स्कूल छोड़ने तक की नौबत आई! लेकिन ! तूने हमेशा मेरी मदद की । आज भी याद है … हाई स्कूल का फार्म भरने की आख़िरी तारीख़ थी…” आगे के शब्द गले में ही रह गये।

गले लगाते हुए महेश ने कहा, “मेहनत तो तेरी थी मेरे भाई ! मैंने तो सिर्फ़ दोस्ती निभाई है।”

“तो अब मुझे मेरी दोस्ती निभाने दे।” दोनों देर तक एक दूसरे का कन्धा भिगोते रहे।

  • Alka Mittal
    D-5, Tejpal Singh Enclave,
    Near Hapur Railway Crossing,
    Delhi Road,
    Meerut City (U.P.)
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