– नरेंद्र कौर छाबड़ा
गूंगी और बहरी, आकर्षक युवती कुछ दिनों से मंदिर में आ रही थी। उसके चेहरे पर हमेशा हल्की सी मुस्कान छाई रहती। कुछ समय बाद ही वह परिचितों की तरह अभिवादन करने लगी। फिर रुक कर इशारों से कुछ कहती लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आता था। वह मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाती।
एक दिन उसने मुझे इशारे से बुलाया और एक पेपर मेरे सामने रख दिया जिस पर लिखा था, ” यहां मंदिर में कुछ महिलाओं ने मुझे कहा है कि ना तो मैं सुन सकती हूं और ना ही बोल सकती हूं फिर मंदिर क्यों आती हूं । मैं इसका क्या जवाब दूं?”
मैं यह पढ़कर अचकचा गई। बड़ा उलझन भरा सवाल था। मैंने पेपर पर लिख दिया, “सोच कर तुम्हें बताऊंगी ..”।
अगले दिन वह बड़े उत्साह से मिली और पेपर मेरे सामने रख दिया जिस पर लिखा था,” आप लोग बोल सुन सकते हो इसलिए पुजारी जी के प्रवचन के दौरान भी बोलते सुनते रहते हो। जबकि मैं उनकी लिप रीडिंग से प्रवचन को समझ कर आत्मसात करने की कोशिश करती हूं जिससे मुझे बड़ा सुख मिलता है इसलिए मैं मंदिर आती हूं”।
मैंने उस पेपर के नीचे लिख दिया, “उन महिलाओं के प्रश्न का इससे बेहतर उत्तर नहीं हो सकता।”
वह धीरे से मुस्कुरा दी। उसकी आंखों में अनोखी चमक आ गई। चेहरे पर संतुष्टता, स्वाभिमान व खुशी के भाव उभरने लगे।
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