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– नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’

ट्रेन में बैठे पिता के पुराने मोबाइल में सिम चेंज करने के लिए बेटा बड़ी बेचैनी से अपने बैग में मोबाइल के साथ मिली हुई पिन ढूंढ रहा था। पिन शायद कहीं गिर गई थी। उसका फोन घर पर छूट गया था। पिता के लिए उसने दूसरा सिम लिया था और उस फोन से बहन को कोई जरूरी बात कहनी थी। अगल-बगल वाले यात्री से पिन मांगी पर किसी के पास नहीं थी। उसके नाखून भी इतने बड़े नहीं थे जिसकी सहायता से मोबाइल के अंदर बंद पड़े सिम को निकाल सके।
पीछे सीट पर बैठी महिला उसके सामने आई और अपनी साड़ी में की लगी हुई सेफ़्टी पिन निकाल उसे दे दी, “देखो, इस पिन से काम हो जाएगा?”
उस पिन से आधे सेकेंड में ही सिम बाहर आ गया।
“लीजिए, काम हो गया।” बेटे ने पिन महिला को दे दी। वह अपनी सीट पर आकर बैठ गई।
“बेटा, तुमने उस भद्र महिला को धन्यवाद भी नहीं बोला।” पिता ने कहा।
“पापा, इतने से काम के लिए धन्यवाद!”
“इतने से काम के लिए ही तुम आधे घंटे से परेशान थे। सिम निकालने के चक्कर में तुमने अपनी कलम भी तोड़ डाली। तुम्हें अभी जरूरत सिर्फ एक पिन की ही थी कोई तलवार की नहीं! जरूरत के हिसाब से हमें किसी की मदद करनी चाहिए जैसे महिला ने की।
“सॉरी, पापा, आगे से ध्यान रखूँगा।” बेटे ने पीछे सिर घुमाया, “आंटी जी थैंक्स!”

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