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– विद्या शंकर विद्यार्थी

खास आ पराया में समझ नइखे आवत
केकरा के आपन कहीं नइखे समझावत
फुलवो के रहिया बा कंटवो के रहिया
कवनो जगहिया में कमें ना तबहिया
घेरता अन्हरिया त दीया ना लेआवत
केकरा के आपन कहीं नइखे समझावत।
चान के अंगनवा सुरूज के अंगनवा
तरई गिनावऽ ताटे रात के अंगनवा
दीनानाथ के दोसी कइसे अदिमी नचावत
केकरा के आपन कहीं नइखे समझावत।
हॅंसिओ के बोलता त जहरे खिआवत
मिलिओ बतियावत त लोरवे पियावता
पकलो अफतिया में अउरी बा पकावत
केकरा के आपन कहीं नइखे समझावत।
माइए इयाद आवे माइए के बतिया
दुनिया में केहू नइखे संग के संघतिया
परलो आ हरलो में केहू नइखे धावत
केकरा के आपन कहीं नइखे समझावत।
सबकर गति इहे होई एक दिन रामजी
भोर छितिराई त बिटोराई नाहीं शामजी
सभे आपन कमी बाटे हंसी में छिपावत
केकरा के आपन कहीं नइखे समझावत।

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