– विद्या शंकर विद्यार्थी
पढ़ल लइका रोटी खातिर मारल मारल फिरेला
साहेब के सलाम बजा के गोड़ धर के गिरेला
ए साहेब अनुशंसा कर दीं डिग्री फर्जी नइखे
साहेब कहलन ए भाई एगो हमरे मर्जी नइखे
भ्रष्टाचार में गिनब एह के त काम आगे ना होई
शिष्टाचार में जनब एह के त काम खर खर होई
लहकल ई दुपहरिया बा कि सीधे सीधे चिरेला
पढ़ल लइका रोटी खातिर मारल मारल फिरेला ।
पुटपुर तोहार कहता बबुआ होनहार तूँ बाड़s
जा घरे जा बाबूजी से मिल के कुछ बिचारs
टेबुल धरते हरs हरs लगबs नोट तूँ दूहे
अबहीं देल बेकार लागता प्रशंसा करबs मुँहे
होटल में मुरूगा के टांग अइसे ना केहू तिरेला
पढ़ल लइका रोटी खातिर मारल मारल फिरेला।
पिछिला गेट से हेलल मीडिया लागल फोटो खींचे
सोचते सोचते साहेब धड़ाम से गिरलन कुर्सी नीचे
डॉक्टर पर डॉक्टर कहलन आ अब ई नइखन
जात जान एही से बा कि सुधरत जात ई नइखन
ढेर सतवले लिलले होइहें गाज एही से गिरेला।
पढ़ल लइका रोटी खातिर मारल मारल फिरेला।।