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– विद्या शंकर विद्यार्थी

जब थाक जाला सफर के मुसाफिर,
सड़क के किनारे छँहाये लागेला,
सफर के चढ़ाई सफर के लंबाई
जीवन के सफर में बोझा के उठाई
चलते चलते जब घमाये लागेला,
सड़क के किनारे छँहाये लागेला,जब ।
बेटा के सादी हुलस से बिआहे
करज सिर करके बेटी के निबाहे
फिकिर आ चिंता में महाये लागेला,
सड़क के किनारे छँहाये लागेला, जब।
जरूरत प अपना खाली हाथ होला
बेटा काम ना आवे खाली साथ होला
जीवन के रेला में रेलाये लागेला,
सड़क के किनारे छँहाये लागेला, जब।
बोझा का ढोके कइले बा जीवन में
चोटे पर चोट अब खइले जीवन में
बसा के घर अपने बिलाये लागेला
रोटी दाल के पछताये लागेला, जब ।

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