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सिद्धेश्वर की दो नज्में
❤ शोर करती है ये आंखें
और जुबाँ रहती है बंद ।
इश्क-ए -जुनून में इस कदर
हो जाती है बातें चंद ।।
किससे कहें खुलकर अपनी
बात न कहने की मजबूरी ?
नजदीक रहकर भी लगता है,
आपस में है कितनी दूरी!
हमारे अल्फाजों और
,शब्दों पर लगे रहते हैं पहरे ।
हाथ-पांव इस कदर बांध देते
हैं ये रिश्तोँ के घेरे ।।
पेड़ों से कटकर भी देखो,
चमक रही पत्तों की लकीरें ।
किस्मत की ये रेखाएं भी
बदल जाए धीरे धीरे ।।
मन की बातें आंखों से कह लो,
दीवारों के होते हैं कान ।
घर,परिवार,समाज और
अपना भी रखना मान सम्मान ll
झूठ, फरेब,धोखा और स्वार्थ
नहीं होता है सच्चे प्यार में ।
नहीं जीत पाने के बाद भी,
अनुपम खुशी होती है हार में ।।
शोर करती है ये आंखें
और जुबाँ रहती है बंद ।
इश्क-ए -जुनून में इस कदर
हो जाती है बातें चंद ।।
( सिद्धेश्वर )
मरना है एक दिन मर जाऊंगा
मुझको मरना है,
एक दिन मर जाऊंगा !
अपनी रंगीन शायरी
तेरे नाम, कर जाऊंगा ll
दिल को कुर्बान किया,
मोहब्बत की राह पर
मत समझना, तेरे नखरे से
इस कदर मैं डर जाऊंगा ll
दौलत नहीं, तो दूंगा
शब्दों का अनुपम खजाना,
कुछ तो तेरे ऋण से,
मैं जरूर ऊबर जाऊंगा l
पूरी दुनिया तेरे बिन,
लगती है कितनी वीरानी,
तेरे शहर को छोड़कर
और किधर मैं जाऊंगा ?
चारों दिशाओं में छाया है
तेरे प्यार की मदमस्त खुशबू,
सामने होगी तेरी तस्वीर,
गांव शहर,जिधर जाऊंगा!!
– सिद्धेश्वर,”सिद्धेश् सदन” अवसर प्रकाशन, (किड्स कार्मल स्कूल के बाएं) / द्वारिकापुरी रोड नंबर:०2, पोस्ट: बीएचसी, हनुमाननगर ,कं
कड़बाग ,पटना 800026 (बिहार )मोबाइल :92347 60365 ईमेल:[email protected]
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