-आशीष कुमार मिश्र
आपने बहुत से दैनिक वार्तालाप में सुना होगा कि अच्छे कर्म किया करो नहीं तो अगले जन्म में ये बन जाओगे वो बन जाओगे इत्यादि, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप जो कुछ इस जन्म में कर
रहे हैं वो पूर्व जन्म से ही निर्धारित होता है ? आप के पसंद-नापसंद बहुत हदतक पूर्व जन्म के किये कर्म पर निर्भर करता है | इसलिए लोग ये कहते हैं कि अच्छे कर्म करो नहीं तो अगले जन्म में
योग्य योनी में पैदा नही होगा तथा यह भी कहते है कि भाग्य में जो लिखा होगा वही तो होगा इसका यही भाव है कि पूर्व जन्म के कर्म के हिसाब से इस जन्म में मेरी जिंदगी होंगी| ऐसे भाव
आम जनमानस में इसलिए समाहित है क्योकि हमारे शास्त्र और धर्म ग्रन्थ बताते हैं कि जो जैसा कर्म करता है उसी प्रकार अगले जन्म में शरीर धारण करता है|
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही। (-गीता 2/22)
अर्थात : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है। आपको लगेगा कि ये तो शास्त्र की बात हुई ऐसा वास्तविक थोड़ी अनुभूति होती होगी तो आपको बताता हूँ एक प्रचलित कहानी जो एक कथा के रूप में एक क्षेत्र में सुनी और
विश्वास की जाती है | एक बार एक गांव में यज्ञ का आयोजन हुआ तथा सभी ग्रामीणों ने मिलके उसको सफल बनाने में लगे हुए थे| उस समय उस क्षेत्र में पूरा ही धार्मिक माहौल था और सभी बच्चे, बुजुर्ग व महिलाये अपने-अपने घर से स्नानं करके यज्ञ स्थल पे आते थे और हाथ में पुष्प और फल लेकर के यज्ञ मंडप की परिक्रमा करते थे तथा संत-महात्मा से कथा सुनते थे|
एक दिन एक व्यक्ति की नजर प्रतिदिन आ रहे एक स्वान/ कुत्ता पर गया और उस व्यक्ति ने देखा तो हतप्रद रह गया क्यूंकि स्वान प्रतिदिन आकर के यज्ञ-मंडप का परिक्रमा करता था और कथामंडप के आसपास बैठा रहता था| आमूमन स्वान/कुत्ता सब खाने की सामग्री के पास खाते लड़ते रहते है पर ये स्वान को ये सब करते न देखकर सब आश्चर्य में थे कि ये स्वान क्यों स्वान की प्रकृति के हिसाब से नहीं है| जब स्वान कथा स्थल पे रहता था तो सोता नहीं था केवल बैठ के संत के तरफ देखता था मनो जैसे वह कथा सुन रहा हो | बाद में जब प्रसाद वित्ररण होता था तब वह कुछ खाता था या कोई प्रसाद देता था तो वह ग्रहण करता था| यह बात किसी तरह कथावाचक संत के पास पहुंची तो उन्होंने उसको देखा, दुलारा और जब भी फलहार करने बैठते थे अपने पास बैठाते थे और उसको भी फलहार या अन्न खिलाते थे |
सभी श्रोतागण स्वान के ऐसे व्यवहार के वजह को जानने के लिए उत्सुक थे तब कथावाचक संत ने गीता के श्लोक को सुना कर पूर्व जन्म के अनुसार जीव के व्यवहार की चर्चा की और समझाया कि-
जो भी जीव इस धारा पर आता है वह पूर्व जन्मके कर्म के आधार पर आता है क्यूंकि परमात्मा जीव के योनियों के निर्धारण का कार्य उसके पूर्व के कर्म के आधार पर करते है जीव वही व्यवहार करता
है जो पूर्व जन्म के कर्म का फल होता है | संत ने कहा कि ये स्वान पूर्व जन्म में कुछ प्रभु भक्ति की होगी इसलिए ही इसे इस जन्म में भी प्रभु कथा तथा धार्मिक आयोजन पसंद आ रहा है और
इसकी सद्गति इस जन्म में हो जाएगी क्यूंकि यह स्वान अपने स्वान प्रकृति को नियंत्रित करके प्रभु भक्ति कर रहा है | संत आगे कहते है कि जैसे प्रभु श्रीकृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो जो भी
आसपास के जीव थे वो सुनने आते थे क्यूंकि उन्हें पता था कि ये प्रभु भक्ति का श्रवण करने से ही हमारा कल्याण होगा और हमसब का जीव- जन्तु श्रेणी से मुक्ति होगा |
आप बहुत से जीव को देखते होंगे कि बहुत से धार्मिक कार्य में वो आसपास रहते है तथा बिना कोई नुकसान किये वो कार्य संम्पन होनेतक वे वहा रहकर के फिर से चले भी जाते है| ये सब
देख कर आप समझ सकते हैं कि आत्मा का बस देह परिवर्तन होता है और लगभग सबका पुनर्जन्म उसके पूर्वजन्म के कर्म के आधार पर होता है |
सनातन शास्त्रों में यह प्रमुखता से कहा गया है कि मनुष्य जो अंत समय में चाहता है उसी योनी में या उसी स्थान पर किसी अन्य योनी में वो जन्म लेता है | इसलिए सनातन धर्म में कहा
गया है कि जब भी अंत समय आये या ऐसा अनुमान लगे उसे प्रभु भक्ति करनी चाहिए| अगर भक्ति करते आपकी मृत्यु होती है तब आप जरुर धार्मिक घर में या संत समाज में जन्म लेंगे क्यूंकि प्रभु श्रीमद्भागवत् में कहते है कि जो जीव मरने से पहले कुछ क्षण भी मेरा स्मरण या भक्ति कर लेता है उसका मै कल्याण कर देता हूँ, यदि आपके विचार में अपने घर में रहने की कामना है या अपने परिवार में रहने की कामना अंत तक व्याप्त रहती है तो आप अगले जन्म जरुर उस घर में या आसपास में पैदा होंगे, परंतु इसका ये मतलब नही हैं कि आप मनुष्य ही पैदा होंगे – आप उस
घर में चूहा, चींटी या कोई भी जीव बनके वहा निवास करेंगे | इन्ही सब से मुक्ति के लिए सनातन धर्म में पारिवारिक तथा सांसारिक मोह का त्याग करके प्रभु आराधना करना जरुरी बताया गया है|
प्रकृतिम स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन: ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशम प्रकृतेर्वशात॥
अर्थ – गीता के चौथे अध्याय और छठे श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं कि इस समस्त प्रकृति
को अपने वश में करके यहाँ मौजूद समस्त जीवों को में उनके कर्मों के अनुसार मैं बारम्बार रचता हूँ
और जन्म देता हूँ। मैं ही उनको नया जीवन देता हुँ अपने कर्म के अनुसार सब जीव जन्म लेते हैं। यही जीवन का सत्य हैं।
- अभियंता, जमशेदपुर
भैया बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आप ने पुराणों में लिखीत हर लेख हम नहीं पढ़ पाते लेकिन जब कोई पुराणों की भाषा को सरल शब्दों में समझाए तो उसे समझना दुसरों के लिए भी आसान हो जाता है हमे सदा जीवन में अच्छे विचारों कि प्राप्ति हो ऐसे और जीवन से जुड़े लेख हम सब से सांझा करते रहे। आप के लेख के लिए आप को शुभकामनाएँ
बहुत बहुत आभार मैम
शुक्रिया आपका