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रणछोड़ रेबारी  सेना में नहीं थे पर सैनिक की तरह लड़े 

रणछोड़ शब्द सुनते ही एक नीति  “दो कदम पीछे  एक कदम आगे” ध्यान आती है  पर रणछोड़ रेबारी इस नीति पर नहीं चले  चार कदम आगे चले वह भी  बगैर किसी पद के,  और देश को गर्व करने लायक जीवन दे गए  । उनकी प्रतिभा ने 1965 का युद्ध जीता दिया उनको सम्मान देने के लिए  उनपर  फिल्म  ” भुज द प्राइड ऑफ इंडिया रियल स्टोरी”  बनी है  ।

विभाजन पूर्व  रणछोड़ का परिवार  पेथापूर पाकिस्तान मे रहता था  जहां पाकिस्तानियों ने तंग करना शुरू किया तो  गुजरात के बनासकांटा  आकर रहने लगे  अपना  पारिवारिक या कहें  तो  जातिगत व्यवसाय  पशुपालन,  ऊंट पालन करने लगे  । रणछोड़ ने इस कार्य मे अपनी  योग्यता को बढ़ाया वे  ऊंट के पैरों के निशान देखकर बता सकते थे कि  उसपर कितने सवार है  । इंसान के  पैर के निशान देखकर उसकी  उम्र और वजन  बता सकते थे और निशान कितनी देर पहले का है यह भी बता देते थे  ।

सन 1965 में  पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया  आक्रमणकारियों ने  गुजरात  के  कच्छ सीमा पर स्थित विधकोट थाने पर क़ब्ज़ा कर लिया  भारत के 100 सैनिक शहीद हो गए  ।

भारतीय सेना बदला लेने, फिर से अधिकार करने को तैयार, बेताब  थी पर  पहुचने में तीन दिन  का  समय लग सकता था  तब  रणछोड़ रेबारी  ने अपना  मार्गदर्शन हुनर दिखाया  रास्ता दिखाया  जान जोखिम में डाली  और  12 घण्टे पहले  विधकोट पहुंचा दिया रणछोड़ यही नहीं रुके  चुपचाप  पाकिस्तान गए  वहा की  सेना की  जानकारी  जुटाई  और  वापस आकर  भारतीय सेना को  दी  और  फिर वहीं हुआ  जो होना था  भारत ने न सिर्फ  थाना वापस लिया  वरन  आगे जाकर  पाकिस्तानी के शहर में तिरंगा फहराया  ।

इसके बाद  रणछोड़ को   पागी कहा जाने लगा   पागी  का  अर्थ  पैरों का जानकार,  मार्गदर्शक, रहबर  भी है  ।

इसके  बाद  सन् 1971 के  भारत पाकिस्तान  युद्ध में  बहादुर रणछोड़ पागी  ने  अपने ऊँटों की मदद से  भारतीय सेना को  गोला बारूद  और भोजन भी पहुंचाया  । 70 वर्ष की आयु में भी  रणछोड़ अपनी माटी के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए  डटे रहे  हर सम्भव मदद कर भारत माता की सेवा करते रहे  ।

उनकी इस  प्रतिभा को जनरल मानेकशॉ ने पहचाना था और  राष्ट्र के लिए  भरपूर उपयोग किया  जब जनरल  2008 में  तमिलनाडु  के  वैलीनगटन  में भर्ती थे तब पागी को याद किया   हेलिकॉप्टर  भेजकर वहा बुलाया  । पागी अपनी पोटली हेलिकॉप्टर में भूल गए तो  हेलिकॉप्टर को फिर से उतारा गया  पोटली में  2 रोटी,  1 प्याज  और  गाठिया थे  । जनरल ने चाव से इन्हें खाया  ।

पिता  सावा  भाई और माता  नाथी  की  संतान रणछोड़ ने  पाकिस्तान से  विस्थापन  का दर्द झेला था  पागी   इस दर्द को  कभी नहीं भूलाया । 1901 में जन्मे  रणछोड़ का  17 जनवरी, 2013 को  112 वर्ष की उम्र में निधन हुआ  इस  शूरवीर की  स्मृति को बनाये रखने बीएसएफ  की  गुजरात  के सुई गांव की अंतरराष्ट्रीय  सीमा  पोस्ट का नाम  रणछोड़ पागी रखा गया है  ।  वे सेना में नहीं थे सैनिक भी नहीं थे पर  एक  महान भारतीय थे  । उनको  पुलिस में  पागी  का पद दिया  जिससे वे  2009 में स्वेच्छापूर्वक सेवानिवृत्त हुए  । उनकी बहादुरी के लिए  राष्ट्रपति पुरस्कार,  वीरता  पुरस्कार  संग्राम पदक, पुलिस पदक, समर सेवा मेडल आदि दिए गए   ।

 

प्रस्तुति – भारत दोसी और डॉ नरेश पटेल

One thought on “रणछोड़ रेबारी ”

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