Spread the love

 

 

– त्रिलोक सिंह ठकुरेला

ये सघन घन
डाकिये हैं
चिट्ठियाँ लाते।

तैरती मुस्कान
खेतों पर
हवा गाती,
बिरहणी
बेकल नदी
फिर प्राण पा जाती,
प्यास से व्याकुल
पपीहे
मुग्ध हो गाते।

शुष्क मन वाली
धरित्री
उर्वरा होती,
छप्परों से भी
टपकते
कीमती मोती,

कृषक स्वप्नों के
सुनहरे पंख
उग आते।

ला सुखद संदेश
मोरों को नचा जाते,
जिस गली जाते
वहाँ
उत्सव नये आते,
जोड़ लेते
सहज ही
अपनत्व के नाते।

Leave a Reply

Your email address will not be published.