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– नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’

गतांक से आगे …

(7)

पांच-छव दिन बाद बारली कवलेज के बगइचा में बइठि के पढ़त रही। तबहीं भूसन ओहिजा आके कहलन, ‘‘बारली, तहरा बहुते – बहुते धन्यवाद बा कि तू हमरा सिगरेट पियल छोड़ा देलू।’’
‘‘तब बाद में मत पीये लगिहऽ। पढ़ाई- लिखाई ठीक से करऽ।’’
फेरू भूसन खुशी मन से बारली के एगो लाल गुलाब के फूल देलन।
‘‘ई फूल देबे के मतलब ?’’ बारली आंखि गुरेरली।
‘‘हमरा तहरा से पेयार हो गइल बा। बिना लाग-लपेट के भूसन आपन भावना बता दिहलन।’’
‘‘भूसन, कवनो दूसर लइका हमरा से ई बात कहले रहित त अभी हम ओकरा के चप्पल से चपलवस देतीं।’’ बारली खिसिया के बोलली। फेरू कुछरूक के कहली,‘‘बाकिर तू हमार बात मनले बाड़ऽ एहिसे कहत बानीं। पेयार बस दू-चार दिन के साथ ह आ हम केहूं से पेयार क के आपन सपना ना तूरब। तहरो से कहत बानीं तूहूं केहूं से पेयार क के आपन जिनिगी खराब मत करऽ। अभी पढ़े के समय बा पेयार करे के ना। अगर तहरा पेयार करे के बा त सभ नारी जात से करऽ। उनुका के मान-सम्मान आदर आ इज्जत करऽ। हमरा से तहरा पेयार क के कुछु ना मिली। झूठा पेयार करबऽ त हमरा के धोखा देबऽ आ सांचा पेयार करबऽ त आपन माई-बाबू से झगड़ा करबऽ। माने दूनों खराबे होई। भले तू पढ़ि-लिखि के बड़ अदमी मत बनऽ बाकिर एगो आछा इंसान जरूर बनिहऽ। दुनिया से गइला का बाद तहार नांव ईज्जत से लिआव।
भले तू कवनो पूजा-पाठ मत करऽ बाकिर सभ लइकी आ अवरत के आछा नजर से देखऽ। पेयार करऽ हर धरम के लोग से। गरीब-बेसहारा के सेवा करऽ। जब तहरा पेयारे करे के बा त बिआह क के आपन मेहरारू से करऽ। उनुका के गोड़ के चप्पल ना, माथ के टीका समुझिह। मेहरारू के घर में बइठा के दूसर– तीसर लइकी के ताका-तुकी कबो जन करिहऽ।
‘‘नारी के भोग-बिलास के चीज मत समुझऽ। उनुका के एगो पूजा के थरिया समुझऽ। नारी में छमा, दया, लाज, शांति, ममता, पेयार आ दुलार भरल बा। आ ओकरो से बढ़ि के ऊ देवी के रूप बाड़ी। अतना कम बा जवन तू हमरा अइसन मामूली लइकी से पेयार करबऽ।’’ बारली पेयार के ममिला में भूसन के आगा-पीछा खूब समुझा देली।
भूसन बारली से वादा कइलन कि ऊ उनुकर हर बात इयाद रखिहन। ई सुनि के बारली खुश होके कक्षा में चलि गइली।
उनुका जाते भूसन के दू – चार गो संघतिया ओहिजा अइलन। सभ जना उनुका से पूछल – ‘‘तब यार, पेयार में कहवां तक बढ़लऽ ?’’
‘‘जरूरी बा सभ लइकी से पेयारे कइल जाई ? हमहूं बारली के बहुते घमंडी लइकी समुझत रहलीं बाकिर जतने उनुकर देह सुन्नर बा ओकरो से बढ़ि के उनुकर मन सुन्नर बा। आजु ऊ हमार आंखि खोल देली।’’ भूसन खुशी से बोललन।
‘‘आखिर ऊ कहलीं हा का ?’’ एगो लइका पूछल।
‘‘कहे के त ऊ बहुत कुछ कहली हा बाकिर एगो बात सबसे नीमन कहली हा कि सभ लइकी आ अवरत के मान, सम्मान, आदर आ ईज्जत करऽ। उनुकर एक-एक गो बात एक – एक लाख के रहे।’’ भूसन बारली के सभ बात आपन संघतिया से कहे लगले।
एने पमली पेड़ के छहिरा में बइठि के नोट्स लिखत रही। माधव ओहिजा आके मजाक से उनुकर कलम ले लेलन। पमली खिसिया के आपन कलम मंगली।
माधव उनुका के कलम देके उनुका लगे बइठते बोललन,‘‘पमली, बुझाता तहार सखी हमरा से बोले के मना कइले बाड़ी ? एहिसे तू ठीक सेहमरा से बोलत नइखू।’’
‘‘ऊ हमरा के काहे के मना करिहें ?’’ पमली भड़कि गइली।
‘‘तू उनुकर गुलाम बाड़ू।’’
‘‘हम कोई के गुलाम आ बस में नइखी। हमार मन, हम केहूं से बोली चाहे ना बोली।’’
‘‘पमली, तहार सखी के कवनो लइका से पेयार नइखे करेके त ऊ मत करसु। बाकिर तू आपन दिल प काहे लगाम लगावत बाड़ू ? कह द ऽ कि तू हमरा से पेयार ना करेलू ? देखऽ हमार आंखि में तहरा खातिर कतने पेयार भरल बा। हम बदमास नइखी। हमार दिल में बस तूहीं बसल बाड़ू।’’ माधव पमली के हाथ पकड़ि के आपन विश्वास में बझवलन।
पमली आपन जवन मन के मोटका रस्सी से बन्हले रही ऊ धोखा दे दिहलस। माधव के गुड़ लेखा मीठ – मीठ बाति आउर बड़का-बड़का आंखि में अपना खातिर चमकत पेयार देखि के ऊ आपन दिल हारि के समा गइली उनुकर बांहि में, ‘‘हँ माधव, हम तहरा के बहुते पेयार करिला।’’
‘‘कहत ना रहलू हा जबान से, तोहार दिल बेकरार रहे।
बाकिर तोहार कजरारी अंखिया बतावत रहे कि तोहरा हमरा से पेयार रहे।’’
माधव एगो सायरी कहि के चूमि लेलन पमली के।
जब से पमली के माधव से पेयार भइल रहे ऊ पेयार के रंगीन दुनिया में उड़े लगली। सोरहो घरी खुसी में झूमसु। गीत गावसु। माधव के छेड़छाड़ उनुकर पेयारी-पेयारी बतिया ऊ इयाद क के मने-मने खिलिखिलि जासु। ऊ दिने- राति माधव के इयाद में डूबल रहत रही। उनुका सगरो माधवे लउकत रहन।
ऊ अब रोज एगो नया समीज- सलवार पहिन के आ खूब सवख-सिंगार क के जात रही कवलेज। माधव के पेयार उनुका कुबेर के खजनों से बढ़ि के लागत रहे। बाकिर बारली ई सभ से अनजान रही।
सिन्हा सर कवलेज में पढ़ावल शरू क देले रहीं । प्रिंसिपल मैडम बारलीसे बड़ा खुश रहीं कि ऊ सभ लइका- लइकी के खूब आछा से पढ़वली हा। ऊ उनुका के खूब तरक्की करे के ढे़रिखा आसीरबाद देली।

एक दिन पमली बारली से डेराते कहली, ‘‘बारली, हम तहरा से एगोबात कहीं, खिसिअइबू ना नू ?’’
‘‘एगो ना दस गो कहऽ। हम तहरा प खिसिया के बूझ गइल बानीं।कहऽ।’’
पमली आपन गोड़ के अंगूठा से जमीन खोदते लजाते कहली, ‘‘हमरा माधव से… पेयार हो… गइल बा…।’’
‘‘आखिर तहरा प पेयार के नसा चहड़िये गइल। तब पेयार के पहाड़ा कइसे गिनत बाड़ू हो हमार रानी ?’’ बारली ठठा के हंसे लगली।
‘‘अब एहमे एतना हंसला के का बाति बा ? तू हमार पेयार के मजाक उड़ावत बाड़ू ?’’ पमली, बारली के ओंठ प राख दिहली हाथ।
बारली कसहूं रोकली आपन हंसी, ‘‘ना हो हमार पेयारी पमली, हम तहार पेयार के मजाक नइखी उड़ावत। बाकिर तू अपना के ताक प राखि के पेयार मत कर बइठिह। जतने जल्दी हो सके माधव से बिआह करे केकहिहऽ।’’
‘‘हँ।’’ पमली कहली।
पमली गेहूंमना रंग के रही। आ ऊ सोचत रही कि उहो माधव लेखा धपऽ -धपऽ गोर हो जास। एहिसे ऊ आपन देहि में खूब साबुन रगड़स। पाउडर आ क्रीम से अपना के आउर सुन्नर बनावस।
आजु कवलेज में उनुका के माथा प साटल लाल टिकुली, आंखि में काजर, ओंठ प लिपिस्टिक आ खुलल लहरात बार में देखि के माधव गाना गावे लगलन, ‘चेहरा कमल बा, बात गजल बा, खुशबू जइसन तू चंचल बाड़ू। तोहार बदन बा कि संगमरमर, तू एगो जिंदा ताजमहल बाड़ू। ओहो पमली, तू कतने सुन्नर बाड़ू। मन करत बा कि…।’’
‘‘माधव अब हमनी के बिआह क लेबे के चाहीं।’’ पमली बीचे में टुभुक देली।
‘‘धत् तरा के जय होखो। एतना मजिगर पल में तू बिआह के बात कहि के सभ गुड़-गोबर क दिहलू। पमली, अभी त हमनी के पेयार के ढेरो दिन नइखे भइल। बिआह करे के नू, तू घबड़ात काहे बाड़ू ? हम तहरे से बिआह करब।’’ माधव पमली के घुंघरवला बार सोहरावते आगे कहलन, ‘‘हम बहुते अमीर घर के लइका बानीं। तहरा के आपन रानी बना के राखब।’’
‘‘छोड़ ऽ ना हमार बार टूटि जाई ।’’ पमली आपन बार प से माधव के हाथहटा देली।
‘‘हम आपन पेयार से जोड़ि देब।’’
‘‘आछा जी, राउर पेयार ना भइल कवनो गोंद हो गइल।’’ पमली हंसि के कहली।
माधव पमली के आपन झूठ – झूठ बात में पटावत रहन आ ऊ पटत जात रही।
*****

दू महीना भइल त सँवरी केसर से डाक्टरनी इंहा चले के कहली। बाकिर ऊ जाये से मना क देलन । सँवरी दुबारा निहोरा कइली केसर से । काहे से कि डाक्टरनी उनुके के जरूरी सलाह देबे के बोलवले रही।
‘‘हम एक हाली कहनी कि ना जाइब। एगो त तोर बाप हमरा के एकलाख रुपिया में ठगि लेलस आ ऊपरे से हम तोरा के दवाई – बीरो कराईं ?’’ केसर भोर के नास्ता खात खिसिया के कहलन।
‘‘रउवा बेरि-बेरि हमार बाबू के ठग काहे कहिला ? का रउवा बुड़बक रहनीं हा जवन ठगा गइनीं…।’’ सँवरी खीसि में बोलली।
सँवरी के ई बात प केसर पुअरा के आगि जइसन लहरि के खीस में छिपा पटक देलन आ उनुका के मारि के भूइंया में लेसार देलन, ‘‘साली…, तू हमरा के बुड़बक कहत बाड़े…।’’
‘‘अब हमरा के हइसे मत मारीं… हमरा के छोड़ दीहीं। गलती से कहा गइल हा…। हमरा के माफ क दीहीं…।’’ सँवरी रोअते हंसोत – हंसोत के केसर के गोड़ पड़त रही।
बाकिर केसर आजु उनुका के मुआवे के फेर में रहन। उहे खीस के झोंक में ऊ जूते पहिनले सँवरी के पेट प मार देलन चार-पांच लाती कस के। फेनु आपन पसेना पोंछि के ऊ चलि गइले डियूटी।
सँवरी दरद के मारे बाप – बाप चिचिआये लगली।
ऊ कसहूं सास भीरी जाके रोअते कहली, ‘‘माई जी, उहां के हमार पेट प बहुते जोर से मार देनीं हा। बहुते दरद होत बा। जलदी से हमरा के डाक्टर लगे ले चलीं…।’’
सास उनुकर सभ कुल-खानदान के लगा-लगा के एक से एक गारी देबे के सुरू हो गइली। सँवरी रोये के अलावा आउर कुछु ना कर सकत रही।
ऊ अपना कमरा में दरद के मारे छटपटा- छटपटा के रोअत रही। बाकिर ऊ निरदई घर में सभ कोई बहिर हो गइल रहे। उनुका हेतना चिला-चिला के रोअल सुनि के अगल-बगल के लोग तांक – झांक करे लागल।
सास आके सँवरी लगे गरजली – ‘‘देख रे बहरका लगउनी, तोरा रोये केबा त गते-गते रोउ। चिला-चिला के भर टोला- महल्ला के आदमी के जनावत बाड़े कि हमरा मार बाजत बा। अपन ई रोये के नौटंकी बंद कर।’’
फेनु सँवरी के रोआई बंद करे खातिर ऊ उनुकर मुंह एगो कपड़ा से बान्हि के दू मुका धरा देली।
सँवरी दरद के मारे ओइसही दिन भर तड़पि-तड़पि के रोअते रहि गइली।
सांझि खा केसर जब डियूटी से अइलन त बाबूजी उनुका से कवनो डाक्टरनी के घरही बोलावे के कहलन। केसर खीसे डाक्टर लियावे ना जात रहन। माई उनुका के ऊँच-नीच समुझवली कि सँवरी के हालत बिगडल़ जात बा अगर उनुका कुछु हो जाई त उनुकर महल्ला के लोग सभ जना के जेल भेजि दिहें।
ओह राति में केसर के एके डाक्टरनी मिलली जवन ओह घरी आपन क्लिनिक बंद करत रही। केसर उनुका से अपना घरे चले के कहलन।
ऊ मरीज के ओहिजे लियावे के बोलली।
केसर बतवलन,‘‘ऊ एहिजा आवे के हालत में नइखी।’’
‘‘काहे ? जवन बात बा ऊ तू सच-सच कहऽ। डाक्टर आ वकील से कुछु ना छिपावे के।’’
‘‘उनुका बाचा होखे के रहे आ हम पेट प…।’’
‘‘आ तू उनुकर पेट प लाती मरलहऽ इहे नू ?’’ केसर के बाति काटि के डाक्टरनी बोलली।
‘‘हूँ।’’
डाक्टरनी खिसिया गइली, ‘‘तू मरद जात होबे करे ल सन अइसन। जब चाहे गर्भ ठहरा दऽ भा गिरा दऽ। जा हम ना जाइब।’’
“तू मनगवें चलबू कि चू-चपड़ करबू।’’ केसर बमक गइलन।
डाक्टरनी सोचली, ‘ऊ बेचारी के का कसुर बा जवन एह घरी दरद से मरत होई। डाक्टर के पहिलका आ अंतिम फरज बा मरत लोग के बचावल।’ फेनु ऊ कहली, ‘‘आछे, रूकऽ हम जरूरत के सामान ले लेतबानीं।’’
घर में घुसते डाक्टरनी के सँवरी के रोआई सुनाइल। उनुका के देखिके ऊ हैरान हो गइली। सँवरी के साड़ी खून से रंगाइल रहे आ ऊ दरद के मारे खस्सी के कटल धड़ लेखा छटपटात रही।
ऊ खूब झरली सास के,‘‘रउवा एगो मेहरारू होके दूसर मेहरारू के दरद ना समुझनी हा। चलीं, जल्दी से सभ खिड़की खोलीं। मन उजबुजाता। पूरा गैस भरि गइल बा।’’
डाक्टरनी जानि गइली कि ई घर में सँवरी का साथे कइसन बरताव होला। ऊ उनुकर नांव – उमिर पूछि के सूई- दवाई के पुरजा लिखि के केसरके धरवली।
सास-ननद ओहिजा जमराज लेखा खाड़ रही जा। तब डाक्टरनी बोलली, ‘‘राउर पतोहि ई हालत में रउवा सभे के कवनो सिकाइत ना करिहें, दूनो लोग जाईं बहरी।’’
उनुका मुंह से खट्टा-तीता सुनि के माई-बेटी बहरी आ गइली। केसरो सूई – दवाई राखि के आ गइलन बहरी।
डाक्टरनी सँवरी के जाचं क के तबा तोड़ सूई देली । ऊ दरद के मारे एको हाली चुप ना रहसु। सूखल कंठ से खाली चिलात रही। डाक्टरनी पानी चढ़ावे के इंतजाम पलंगे प कइली। उनुका सँवरी के सम्हारे में दू घंटा लागि गइल। जब ऊ बेहोस हो गइली तब डाक्टरनी के जीऊ में जीऊ पड़ल ना त उहो सांसते में पड़ल रही।
ऊ बहरी आके सास से कहली, ‘‘सँवरी आउर एको घंटा दरद में रहती त मू जइती।’’
‘‘ओकर बाचा ?’’ सास पूछली।
‘‘राउर बेटा के करतूत से बेचारी के कोख उजड़ि गइल। अभी सँवरी बेहोश बाड़ी। ऊ बहुते कमजोर हो गइल बाड़ी। उनुका बेड रेस्ट चाहीं।’’
‘‘मेम साहेब, राउर केतना भइल फीस ?’’ ससुर पूछलन।
‘‘एक हजार रुपिया…।’’
‘‘हेतना फीस ?’’ केसर के आंधी आ गइल।
‘‘समुझऽ त कमे में फरिया गइल ना त ढ़ेर के चक्कर में पड़ल रहतऽ। काल्हु हम सँवरी के आके देखि जाइब।’’ डाक्टरनी फीस लेके चलि गइली।
सँवरी के सूई – दवाई में होतना रुपिया लगला से केसर के करेजा अइंठा गइल। ऊ गरई मछली अइसन छटपटा के रहि गइलन।
बिहान भइला सँवरी के होश आइल। देखली कि हमरा पानी चढल़ रहे ।

ऊ डाक्टरनी सँवरी के देखे अइली। केसर आके उनुका भीरी हनुमान लेखा खाड़ हो गइलन। डाक्टरनी केसर से बहरी जाये के कहली बाकिर ऊ ना गइलन।
ऊ खिसिया गइली, ‘‘डाक्टर तू हव कि हम ? बहरी जा। आ जाते – जाते केवाड़ी बंद क दीहऽ।’’
केसर मुंह लटकवले बहरी आके केवाड़ी के पाला सटा देलन।
डाक्टरनी सँवरी लगे एगो कुरसी प बइठते पूछली, ‘‘सँवरी, अब तहरा दरद नइखे नू होत ?’’
‘‘तनी-तनी होत बा।’’ सँवरी गते से बतवली।
‘‘आछे, अभी हम एगो सूई दे देत बानीं त तहार दरद खतम हो जाई।’’ कहि के डाक्टरनी सँवरी के एगो सूई लगा देली।
‘‘हमार बाचा गिरि गइल बा का ?’’ सँवरी के आपन देह हलुक लागलत ऊ सूई लेला का बाद पूछली।
‘‘सँवरी, तू घबरा मत। तू फेरू से माई बनि जइबू। बाकिर ई गिरि गइल।’’
ई सुनि के सँवरी डहकि – डहकि के रोये लगली, ‘‘दीदी, कइसे हमार बाचा गिरि गइल।’’
‘‘ई तू बतावऽ।’’
सँवरी रोअते-रोवत डाक्टरनी के हाथ पकड़ि के सभ बात बता दिहली, ‘‘दीदी, रउवा हमरा के ई नरक से निकालि दीहीं। एगो राजदूत खातिर सभे केहूं हमरा के मारे-पीटेला आ ओकरे चलते हमार पइलउठे के बचो गिरि गइल।’’
सँवरी के एतना दरद भरल बाति सुनि के डाक्टरनी के आंखि भरि गइल। ऊ सँवरी के माथ प हाथ राखि के कहली, ‘‘सँवरी, तू घबरा मत। हम तहरा के एहिजा से निकालि देब।’’ फेनु पता लिखे खातिर ऊ सँवरी के कागज – कलम देली। सँवरी अपना घरे के पता लिखि दिहली।
‘‘देखऽ सँवरी, समय प दवाई खइहऽ। एको काम जन करिहऽ। बहुते कमजोर हो गइल बाड़ू। सास चिलइहन त चिलाए दीहऽ।’’ डाक्टरनी सलाह देके बहरी आ गइली।
ऊ सँवरी के सास-ससुर से कुछु कहे के सोचली बाकिर आत्मा कहलस कि ई मरखाह दहेज लोभिया सँवरी के अभिये मारे लगिहें स।
फेरू ऊ आपन क्लिनिक में आके सभ बात चिट्ठी में लिखि के सँवरी के घरे भेजि देली।
सँवरी मने-मन खूब रोअसु। उनुकर लोर पोंछे वाला ओहिजा केहू ना रहे । पहिला बाचा गिरला से उनुकर माई बने के सपना चूरे – चूर हो गइल रहे । केसर प उनुका खून खउलत रहे।
सास-ननद घर के काम करत रही जा। सास जतने काम ना करस ओतने केसर आ सँवरी के खूब गारी देस, ‘‘नतिया केसरा आपन मउगी के मारि – पीटि के पलंग प बइठा देलस आ हमरा काम करत-करत अतड़ी ढीला भइल बा। ई मुझउसी हमार बनावल खाई त एकरा मरला प पिलुआ पड़ी।’’
ई सभ सुनि-सुनि के सँवरी के आउरी रोआई छूटे।
ऊ पलंग प बायां करवट फेरले सोचत रही – ‘का ई उहे केसर हवन जवन पहिले हमरा के अतना पेयार करत रहले । मानत-जानत रहले आ अब बात – बात में हमरा के पीट देत बाड़े। हमहूं उहे बानीं आ उहो उहे बाड़न। फेरू बदलि के गइल ? समय बदल गइल बा। एतना हमार दान-दहेज देके बिआह भइल। राजदतू के कवनो करारो ना रहे आ अब ओकरे खातिर हमार लुगा लुटात बा। केसर आपन माई के हर नजाइज बाति मानि के हमरा के पीटेलन। उहे त उनुका के उसुका के दबक जाली। ऊ माई होके केसर के खिआवली त हम मेहरारू होके उनुका के भोग करवावेनी । हमनी दूनों सास-पतोहि के सरीर त एके बा खाली रिश्ता बदलि गइल बा। का अभी तकले हमार सास अपना नइहर से दहेज के कुछु – कुछु सामान लियावेली ? अगर उहे ठीक रहती त अपना बेटा के बिगड़े ना देती…।’
सोच में डूबल सँवरी के बुझाइल कि उनुका पलंग प केहू आके बइठल हा। घुर के देखली । केसर पलंग प बइठि के खइनी बनावत रहन।
‘‘रउवा हमरा मारत घरी ना बुझाइल रहे कि हमरा कतने दरद होई ? हमार बचो गिरि गइल…।’’ सँवरी उठि के बइठते भरले आंखि से कहली।
‘‘तोर दरद से हमरा का मतलब ? लइकी रहे एहि से त मार के गिरादेनी हा।’’ केसर खइनी ठोंकि के ओंठ तरे रखते कहलन।
‘‘रउवा कइसे जानत रहनीं हा कि ऊ लइकिये रहे…?’’
‘‘पहिले-पहिल लइकिये होली सन। ओकरा खातिर अभिये से हमरा पान के पइसा बचावे के पड़ि जाइत। साला दू-तीन हजार रुपियो लागि गइल। अब बकऽ बकऽ बोल मत, हमरा सूते दे।’’ केसर पलंग प ओठंग गइले।
‘‘रउवा एहिजा मत सूतीं। ऊ डाक्टरनी मना कइले बाड़ी।’’
‘‘तोर बाप पलंग देले बा एहिसे हम एहिजा ना सूतीं ? ऊ डक्टरिनिया के त पागल कुकुर कटले बा।’’
‘‘त रउवा एहिजा सूतीं। हम चुहानी घर में जाके सूति जात बानीं।’’ सँवरी कहते उठली।
‘‘चुप-चाप एहिजे सूत। हमार बिआह भइल बा तोरा जवरे त हम अकेले सूती ?’’ केसर सँवरी के हाथ खींचि के उनुका के दू झापड़ धरा देले आ उनुका प भूखाइल बाघ नियन टूट पड़लन ।

पनरह-बीस दिन बाद ऊ डाक्टरनी के लिखल चिट्ठी सँवरी के माई के मिलल। चिट्ठी पढ़ि के ऊ छाती पीटे लगली, ‘‘ई हमार बेटी के का भइल ए राम…।’’
बाबू कपार प हाथ धके बइठ गइलन। ओही घरी पमली-बारली, सँवरी के खोज-खबर लेबे अइली जा। माई के रोअते देखि के पूछली, ‘‘का भइल हा चाची, तू रोअत काहे बाड़ू ?’’
बाबू ऊ लोग के चिठ्ठी धरा देलन। चिट्ठी पढ़ि के दूनों जानी रोये -रोये हो गइली।
‘‘अब का कइल जाई ?’’ बाबू कहले।
‘‘कइल का जाई। रउवा जाके सँवरी के ले के आईं।’’ बारली लोर पोंछते कहली।
‘‘अगर चाचा, रउवा सँवरी के लियावे ना जाइब त हम आपन भइया के जवरे जाके सँवरी के ले आइबि। बाकिर उनुका के अब ओहिजा एक दिन ना रहे देब।’’ पमली सिसिक-सिसिक के बोलली।
‘‘आपन बाबा भइया मरि – मरि गइले जोलहा दुनिया ऊपर भइले । सँवरी के तू लोग से जादे चिंता हमनी के बा। तू लोग त खाली सखिये हऊ जा।’’ माई बोलली।
बारली खिसिया गइली, ‘‘चाची जी, भले हमनी के सँवरी का साथे खून के रिश्ता नइखे बाकिर उनुका से हमनीं के दिल के रिश्ता बा। जाईं, राउर खून दरद से बोलावत बाड़ी।’’
‘‘अब त बस ना मिली। काल्हु जाइब।’’ बाबू घड़ी देखि के कहलन।
‘‘चाचा, पहिले ई डाक्टरनी से रउवा भेंट क लेब। ई त एतना नीमन काम कइली हा कि हमनी के सँवरी के बारे में बता देली हा। ना त दूसर डाक्टरनी एतना थोरे करित।’’ पमली कहली।
कवनो खबर देबे खातिर बारली आपन फोन नंबर देली बाबू के।

(8)

बाबू भोरे वाली बस पकड़ि के सँवरी के ससुरा गइले । पहिले ऊ डाक्टरनी के खोजि के गइलन उनुका क्लिनिक में, उनुका के चिट्ठी देखवलन,‘‘रउवे ई चिट्ठी लिखले रहनीं हा ?’’
‘‘हँ, हमही लिखले रहलीं। जलदी जाके आपन बेटी के ओह कैद से निकालीं। अगर ऊ लोग सँवरी के ना जाये दी तब रउवा हमरा लगे आइब।’’ डाक्टरनी कहली।
बाबू सीधे सँवरी के ससुरा पहुंचलन। दुआरिये प समधी से भेंट हो गइल। बाबू उनुका के परनाम करि के कहलन, ‘‘हम सँवरी से भेंट करे आइल बानीं।’’
‘‘जा… जा, पहिले राजदूत लिआव तब बेटी से मिली ह।’’ समधी दुरदुरा देलन। ऊ बाबू के घर के भीतरे ना जाय देलन। बाबू बहरिये बइठल रहि गइलन। केहूं उनुका के पानियो के पूछल ना।
जब सँवरी के बाबू के आवे के मालूम भइल त ऊ दउड़ के उनुका से भटें करे के आवल चहली बाकिर सास उनुका के ना मिले देली, ‘‘जब तकले तोर बाप राजदूत आ चाहे ओतना रूपिया ना दीही तब तकले तू आपन बाप-माई के मुंह ना देखबे।’’
सँवरी बिलिख-बिलिख के लगली रोवे। बाबूजी कंपनी में फोन क के बोलवलन केसर के घरे। केसर ससुर के देखि के खीसी भूत हो गइलन, ‘‘रउवा कहवां ?’’
‘‘हम सँवरी के देखे आइल बानीं।’’
‘‘पहिले राजदूत चाहीं तब।’’ केसर गरजलन।
बाबू ऊ चिट्ठी केसर के दिहलन, ‘‘सीधे मन से तू हमरा के हमार बेटी से मिले द ना त…।’’
‘‘ना त करब का ?’’ चिट्ठी पढि के केसर फाड़ि दिहलन।
‘‘हम जानत रहलीं हा कि तू ई चिट्ठी फड़ब। एहि से एकर असलिया घरे बा। ई त ओकर नकल रहे। अगर तू हमरा के सँवरी से ना मिले देब त अभी हम थाना में जात बानीं। हमरो नांव बहोरन ह जानींला कइसे लोगके खखोरल जाला।’’ बाबू धमकी देले।
केसर डेरा गइलन। ऊ बाबू के सँवरी से मिले देलन।
बाबू, सँवरी के देखि के रो पड़ले।
सँवरियो, बाबू के पकड़ि के अहो धार रोये लगली, ‘‘बाबू… हो.., जलदी हमरा के एहिजा से ले चल…। हमार बाचा…।’’
‘‘हँ बबी, तोरे के त हम लियावे आइल बानीं। हाली से तू आपन दू – चार गो कपड़ा ले ले।’’ बाबू रोअते कहलन।
सँवरी एगो झोरा में हाली – हाली आपन चार-पांच गो साड़ी आ दवाई रखि के बाबू के जवरे चले के भइली।
‘‘ई कहीं ना जाई।’’ केसर रोकलन।
‘‘तू हमार बेटी के अइसन दसा कइले बाड़ आ कहत बाड़ कि ना जाई। तहरा के त हम टेकुआ अइसन सीधा करब।’’ बाबू कहि के सँवरी के लेके सड़क प आ गइलन।
सँवरी बेरि-बेरि पीछे ताकत रही कि कहीं केसर उनुका के पकड़ि के दुबारा घर में बंद मत कर देस। बीच राही में ऊ डाक्टरनी मिलि गइली।
बाबू हाथ जोरि के बोललन, ‘‘रउवा हमरा प बहुते बड़का एहसान कइनीं हा नात हमार बेटी के का से का हो जाइत ?’’
‘‘एह में एहसान के का बाति बा ? हर डाक्टर के अइसन करे के चाहीं । तन के इलाज आपन पढ़ाई से कइल जाला बाकिर मन के इलाज आछा काम आ बात से कइल जाला। रउवा जलदी इनिका के घरे ले जाईं। ना त ऊ दहेज लोभिअन के कवनो भरोसा नइखे । मिनटे – मिनट ऊ सभनी के दिमाग बदलेला । सँवरी, तहरा कवनो तकलीफ होई त ओहिजे कवनो डाक्टरनी से देखा लिह। बहुते जलदी तू ठीक हो जइबू।’’ कहि के चलि गइली डाक्टरनी।
बाबू फोन क के बारली से सँवरी के आवे के बात कहि देलन। बारली, पमली के लेके सँवरी के घरे जाके उनुका आवे के बात बतवली।
सँवरी अइली। उनुका के देखि के माई के रोआई छूटि गइल। ऊ एकदम करिया आ दतुअन लेखा हो गइल रही पातर। ऊ माई के पकड़ि के खूब रोवे लगली। पियासे बाबू के कंठ सूखा गइल रहे। ऊ हाली से पानी पियलन। ऊभोरे से भूखे पियासे रहन।
‘‘बुचिया, कुछ खइले बाड़े ?’’ माई सँवरी के लोर पोंछते पूछली।
‘‘ना’’।
विमली उनुका के रोटी-तरकारी देली खाए के। सँवरी खाये से मना क दिहली।
‘‘काहे ना खइबू ? खा। एतना काहे रोअत बाड़ू ? तू फेरू से माई बनि जइबू।’’ कहि के बारली सँवरी के मुँह में रोटी-तरकारी के कवर डलली।
फेनु पमली उनुका के दवाई खिआ के बारली जवरे अपना घरे चलि गइली।
दोसरा दिन पमली चार-पाचं किसिम के फल आ बारली काजू – किसमिस के पाकिट लेके सँवरी लगे अइली।
‘‘तू दूनो जानी के हेतना महंगा फल – मेवा लिअवला के का जरूरत रहे ? सँवरी गते से कहली।’’
‘‘अरे, तू बरियार होखबू तब नू हमनीं सेखूब बतिअइबू ।’’ पमली – बारली एके जवरे कहि के उनुका के फल – मेवा खाये के दिहली जा।
ऊ दूनों जानी कतनो उतजोग कइली कि सँवरी मत रोअस बाकिर ऊरो पड़ली।
‘‘सँवरी, आपन लोर पोंछ। हम तहरा के एगो खुशखबरी सुनावत बानीं।’’ बारली तनी हंसि के कहली।
‘‘कइसन खुशखबरी ?’’
‘‘जानत बाड़ू सँवरी, एह घरी पमली माधव नांव के एगो सुन्नर लइकासे पेयार करत बाड़ी।’’ बारली, पमली के देने ताकते कहली त ऊ तन – मनसे लजा गइली।
‘‘तब पमली, आपन बिआह के मिठाई कहिया खिअइबू ?’’ सँवरी के सूखल ओंठ प बहुते दिन के बाद हंसी आइल रहे।
‘‘बहुते जल्दी। पहिले तू झट से ठीक हो जा।’’ पमली मुसुका के कहली।

पमली-बारली, सँवरी के अइसन हाल प बहुते दुखी रही जा।
कवलेज में माधव पमली से पूछलन, ‘‘पमली, एह घरी तू हमरा से मिलतो नइखू आ बड़ा दुखी लागत बाडू । काहे ?’’
‘‘ना असहीं ।’’ पमली टार देली। फेरू माधव से परेम के बाति बतिया के ऊ हरिया गइली।
एक दिन पमली आठे बजे भोर में बारली के घरे अइली। ओह दिन बारली के क्लास एगारह बजे से रहे, एहिसे ऊ आठ बजे तक सूतल रही।
पमली, बारली के हुरपेट के उठवली आ कवलेज लिअवली।
कवलेज में ओह घरी केहूं के ना आवल देखि के बारली कहली, ‘‘पमली, तू हमरा के कवलेज आवे खातिर त उबिया देलू हा, जा खोज आपन पिअरऊ के, परेम के पहाड़ा पढ़े खातिर।’’
‘‘बुझाता हमार पिअरऊ अभी ना अइहें तब तकले हम तहरे से झूठ – सांच बतिया लीहीं। आछे बारली, तू बिआह करबू कि ना ?’’ पमली पूछली।
‘‘बिआह के नतीजा हम सँवरी के रूप में देखते बानीं।’’ बारली बइठते बोलली।
‘‘आछे, आपन सइंया के छवि दिल में बनवले बाड़ू कि ना ?’’ पमलियो बइठि गइली।
‘‘लगलू पगलाए। एहिजा हमरा पढ़े के फुरसत नइखे आ हम चली छवि बनावत। हमरा किरण बेदी अइसन बड़का पुलिस अफसर बने के बा आ जेतना लोग एह धरती प आछा काम कइले बाड़न ओइसन के हमरो करे केबा।’’ आत्मविश्वास से कहली बारली।
‘‘आछे मान ल, तहरा पुलिस अफसर बनला का बाद कवनो पत्रकार तहरा से ई पूछी कि तोहार सपना के राजकुमार कइसन होखी त तू का कहबू ?’’ पमली, बारली के दिल के बाति जानल चाहत रही।
‘‘कटोरा लेके भीख मांगी।’’ बारली कहि के खूब हंसे लगली।
पमली झूठो के खिसिया गइली।
‘‘अरे, जे पेयार करेला ओकरा खीस ना बरे।’’ बारली बोलली, ‘‘आछे त सुन पमली, हमार सपना के राजकुमार हमरा सामने आसिक, आवारा, पागल, दीवाना सभ होखे बाकिर दूसर लइकी के सामने मरयादा पुरूषोतम श्रीराम होखे। अगर उनुका कहीं अकेले सुन्नर से सुन्नर लइकी मिलि जाये त ऊ लइकी के आपन रक्षा में राखि के उनुका के सही– सलामत घरे पहुंचा देस। जतने उनुकर तन सुन्नर होखे ओकरो से बढ़ि के हमार सइंया के मन सुन्नर होखे। उनुकर दिल में सभ लइकी आ अवरत खातिर मान, सम्मान, आदर अउरी इज्जत भरल होखे। बस अतने।’’
पमली खुशी मन से कहली, ‘‘अहो बारली, अइसन लइका मिलिहें कहवां ?’’
‘‘तू हमार अगुअई करबू का ? देख, तोहार माधव पिअरऊ एनिये लाल गुलाब के फूल लेले आवत बाड़े, तोहार पतरसुटकी जूड़ा में लगावे खातिर। उनुका के देखि के नयना जुड़ा ल।’’ माधव के आवते देखि के बारली हंसली।
‘‘एहीसे त नयना जुड़ावे आइल बानीं।’’ पमली मुसुकी छोड़ली।
माधव हंसते बारली के सामने पमली के जूड़ा में फूल खोसि देलन।
पमली, माधव के जवरे बारली के हाथ हिलावते खिलखिलाते चलि गइली।
****

सँवरी के नइहर अइला एके-दू महीना भइल रहे कि उनुकर तबियत गड़बड़ा गइल। माई उनुका के डाक्टरनी से देखवली। फेनु से सँवरी के गोद भरि गइल रहे । सभे केहू बड़ा खुश भइल। सँवरी फेरु से बेटा – बेटी के सपना संजोगे लगली।
एक महीना प बारली, सँवरी के डाक्टरनी लगे से देखवा के घरे लिअवली। दवाई खाते सँवरी कहली, ‘‘बारली, आपन जीजाजी लगे चिट्ठी लिखि दकि उहाँ के दुबारा बाबूजी बने के बानीं। ऊहां के आके हमरा के ले जाईं।’’
‘‘ऊ ना अइहें। अभी तलुक तू उनुका के हेतना मानत बाड़ू ?’’ बारली पूछली ।
‘‘उहां के हमार मरद हईं। हमार सोहाग आ देवता हईं।’’
‘‘ओहीसे ऊ तहरा के रोज जूता, डंटा आ बेल्ट से पूजा करत रहले। आछे हम चिट्ठी लिखि देब।’’ बारली खिसिया के बोलली।

फेनु ऊ चिट्ठी लिखि के केसर लगे भेजि देली।

एही बीचे कृष्ण जन्माष्टमी पड़ल। सँवरी आपन जिद से पमली आ बारली के जवरे भूखि के कृष्णा जी के पूजा – आरती कइली। सँवरी के जिनिगी फेनु से खुशहाल हो जाए पमली-बारली भगवान जी से हाथ जोरि के निहोरा कइली जा।
*****

पमली पढ़ाई के बहाना माधव के जवरे खूब मटरगस्ती करत रही। ऊ दिन – दुनिया से बेखबर माधव के पेयार में डूबि गइल रही। एक दिन माधव उनुका के लेके जेने-तेने घूमे चलि गइले। बारली के ई बात मालूम चलल।
सांझि खा पमली जब घरे अइली त उनुकर माई उनुका प खिसिअइली, ‘‘तू भोरे के निकलल अभी आवत बाड़े। कहवां गइल रहिस ? बारली तोरा के खोजे आइल रही। आनी से बानी आ लछन से पहचानी। तोर एह घरी लछन हमरा ठीक नइखे लागत। कवलेज में पढ़त बाड़े त ठीक से रह।’’
‘‘माई, हमार परीक्षा बा एहिसे एगो लइकी के घरे हम नोट्स मांगे गइल रहलीं।’’ पमली सीधे बोलली झूठ।
‘‘एने-ओने जो मत। जमाना खराब बा। जो जाके खा ले।’’ कहि के माई मंदिर में दीया बारे चलि गइली।
पमली मने-मने खूब खुश रही।

दोसरा दिन ऊ सँवरी से हंसि – हंसि के बतियावत रही। तबहीं ओहिजा बारली अइली आ पमली के ऊपरे से नीचे ताकते कहली, ‘‘तू काल्हु माधव के जवरे कहवां गइल रहलू हा ? खूब अकेला में छकेला मारत बाड़ू। बताव ऊ तहरा जवरे का कइले हा…।’’
‘‘सुनत नू बाड़ू सँवरी, बारली हमरा से का पूछत बाड़ी ? भला इहो बतावे वाला चीज ह।’’ पमली, सँवरी से कहली।
सँवरी बारली के खींचली कान, ‘‘तहरा इहे सभ पूछे के ह…।’’ फेरू पमली के डंटली, ‘‘आ पमली, तूहूं सेयान बाड़ू। माधव के जवरे कहीं आइल – जाइल मत कर। समुझलू ?’’
‘‘हँ।’’ कहि के पमली, बारली के जवरे कवलेज चलि गइली।
कवलेज में माधव पमली के गाल चूमते कहलन, ‘‘पमली, एह घरी खूब मजा आवत बानू।’’
‘‘माधव, हमनीं के गलती करत बानीं जा। अगर कुछु उल्टा-सीधा हो जाई तब।’’ पमली मने-मने डेराइल रही।
‘‘अरे, पेयार में ऊ सभ होला । अगर ऊ सभ ना होई त हमनीं के बुझाई कइसे कि हमनीं के पेयार करत बानीं जा। रहल बात खराब नतीजा के तहम सम्हार लेब। आछे, अब क्लास में चल।’’ माधव पमली के हाथ पकड़ि के क्लास में चल गइलन।

बारली के भेजल चिट्ठी मिलल केसर के। ऊ चिट्ठी पढ़ि के माई से कहलन।
‘‘लिख दे चिट्ठी कि जवन सान से बहोरना आपन बेटी के ले गइल बा अब ऊ अपने कपार प ओकरा के आ ओकर होखे वाला जमला के राखो ।जब तकले ऊ एगो राजदूत आउरी चालीस हजार रूपिया ना दीही तब तकले ओकर बेटी नइहरे में बाप के छाती प मूंग दर के रहो। हेतना दिन के सूद बेयाज ना भइल।’’ माई हाथ ओलार-ओलार के कहली।
केसर रहन माई के सूपूत बेटा माई जइसे कहली ऊ ओइसही चिट्ठी लिखि के बारली लगे भेज देलन।
बारली के चिठ्ठी मिलल। ऊ बिना पढ़ले ख़ुशी से सँवरी के गइली देबे । ओह घरी पमली सँवरी से बतियावत रही।
सँवरी लहस के अन्तरदेसी खोलली आ पढ़ते-पढ़ते उनुकर लोर के धार गिरे लागल।
‘‘सँवरी, तू रोवे काहे लगलू ? चिट्ठी में का लिखल बा ?’’ बारली घबरा के पूछली।
‘‘उहाँ के हमरा के छोड़ि दीहनीं…।’’ सँवरी भोकार पारि-पारि के रोवे लगली।
हाली-हाली सभे केहू पढ़ल चिट्ठी। सँवरी के घर में आंधी-तूफान आ गइल कि केसर सँवरी के छोड़ि देलन।
‘‘हे भगवान, हम फुटपाथ प कपड़ा बेचे वाला आधा जीऊ के आदमी अब एगो राजदूत आ चालीस हजार रूपिया कहवां से लिआईं ? एतना दिआई त ऊ हमार बेटी के राखी ना त छोड़ि दीही। एकर बिआह में त हम अपने भिखार हो गइल बानीं । ऊपरे से सभ महाजन के करजा हमरा प अलगे चढ़ल बा। अब हम का करीं ?’’ बाबू कपार पीटि-पीटि के लगलन रोवे।
बारली केसर प केस करे खातिर कहली। माई आ बाबूजिओ उनुके पक्षमें रहन। बाकिर सँवरी रोअते कहली, ‘‘हम आपन मरद प केस ना करब। नइहरे में चउका-बरतन करि के रहि जाइब।’’
‘‘तू पगलाइल बाड़ू। नइहर में कब तक रहबू ? आजु तहार माई – बाबू बाड़े त तहार परवस्ती चलि जाई बाकिर काल्हु अगर भोला के मेहरारू आईत तहरा के एहिजा बसे दीही ? का तू छोट भउजाई के लउड़पाना करबू ? केसर के जेहल के हवा खिआव।’’ पमली भींजले आंखि से कहली।
बारली समुझवली – ‘‘अब ऊ जमाना ताखा तरे गइल सँवरी, जब मरद आपन मेहरारू के मारि – पीटि के घर से निकालि देत रहसन आ मेहरारू लात जूता सहि के रहि जात रहली स। आजु नेयाय लेबही के पड़ी। बीछी के बीखआ साँप के जहर जतने जहरीला होला ओतने ई दहेज लोभियन के माथा खराब हो गइल बा। ई सभनी के जतने दिआई ओतने लेबे खातिर ई आपन दूनों हाथ पसरले रहेल सन। तू चुप -चाप आपन ससुरार वालन प केस कर।’’

सँवरी बाबू के जवरे थाना में गइली। ऊ केसर के आ ओह डाक्टरनी के चिट्ठी सहित दहेज खातिर मारल-पीटल आ बाचा गिरावे के सभ बाति दरोगा जी से कहि के आपन सास, ससुर आ केसर प प्राथमिक दरज करवली।
दहजे के मोमिला रहे, चटे सिपाही– दरोगा सास-ससुर के पकड़लसि आ भागत – भागत में केसर धरइलन।
केसर के देहि प पुलिस के डंटा बाजल तब उनका सँवरी के दरद बुझाइल। जब सास-ससुर के जेहल के रोटी खाए के मिलल तब ओह लोग के बुझाइल कि पतोहि के दिहल दुख अपने माथ प दोगिना दुख बन के पड़ेला।

( 9 )

अचके डेढ़ महीना बाद पमली के तबीयत खराब हो गइल। बारली उनुका के डाक्टर लगे ले गइली। डाक्टर जांच क के कहलन कि ऊ माई बने के बाड़ी । सुनते पमली के आंखि से गंगा – जमुना बहे लागल। बारली के त गोड़ तरे से जमीने सरकि गइल।
दूनों जानी भर रास्ता लोर गिरावते कवलेज पहुंचली। कवलेज पहुंच बारली आपन लोर पोछि के कहली, ‘‘पमली, माधव से भेंट क लीह…।’’
पढ़े में दूनों जानी के मन ना लागत रहे। क्लास खतम भइल त पमली माधव के हाथ पकड़ि के एकांत जगहा में ले गइली।
माधव हाथ छोड़ावते मुसुकइलन, ‘‘एहिजा हमरा जवरे पेयार का करबू ?’’
पमली बिना कुछु कहले माधव के छाती से लागि के खूब रोवे लगली।
‘‘काहे पमली, का भइल हा ? तू एतना रोअत काहे बाडू ?’’ माधव पमली के बार सुहरावते पूछलन।
‘‘माधव, तू हमरा से बिआह क ल… ना त हम केहूं के मुंह ना देखाइब। आजु बारली के जवरे डाक्टर लगे गइल रहलीं। हम तोहार बाचा के माई बने के बानी।’’ पमली रोअते-रोवत बतवली।
‘‘का तहरा बाचा होखे के बा ? ई तू का कहत बाड़ू ?’’ माधव करेंट मरला अइसन पमली के अपना से अलगा कइलन।
‘‘हम साँच कहत बानीं। तू हमरा से बिआह क ल। ना त हम बदनाम हो जाइब…।’’
माधव आपन रंग बदलले, ‘‘हम ई झमेला में ना पड़ब।’’
‘‘काहे ना पड़ब ? आखिर तू ही नू हमरा से पेयार कइले बाड़…।’’
‘‘हं, हम पेयार कइले बानीं। बाकिर ई त हम नइखी नू जानत कि तू हमरा पीठ पीछे केकरा से मिलेलू ? हमार पीठो में आंख बा ?’’
माधव के ई बाति प पमली के देहि में आग लागि गइल। ऊ उनुका के कस के एगो चमेटा मरली, ‘‘तोहर पीठ पीछे हम दूसर-तीसर लइका से मिलीना ? तू ही नू कहले रहला हा कि एकर जवन नतीजा होई हम सम्हार लेब।’’
चमेटा खाते माधव के होश बिगड़ि गइल। ऊ पमली के मुंह प रूपिया फेंकलन, ‘‘ले ई रूपिया आ चलि जो मेमिन लगे।’’
‘‘एतना में तू हमरा के कीनत बाड़ कि हमार पेयार के ?’’ पमली भरले आंखि से पूछली।
‘‘तोर नजाइज बाचा के मउवत कीनत बानीं।’’ माधव गरजलन।
‘‘तू कइसन बाप बाड़ जवन आपन होखे वाला बाचा के मऊवत कीनत बाड़…?’’
‘‘एकदम ना। ई बाचा हमार ना ह।’’ माधव आपन पल्ला झरलन। फेरू मुसुकियाते बोलले, ‘‘अगर हम तोरा जवरे पेयारे में कुछु कइले भी रहीं त तू काहे आगे बढ़ल रहिस ? ई मत समुझ कि तोर घरे के लोग तोरा कुंआरी माई बनला प खुश होके मिठाई बंटिहे। आजु-काल्हु के जादेतर लइकी पढ़ि – लिखि के अपना माई-बाबू के कवनो मेडल भा पुरस्कार त नइखी सन देत बाकिर उनुका के प्राइवेट नाना – नानी जरूर बना देत बाड़ी स।’’
‘‘अगर हम कुंआर माई बनल बानीं त तू हूँ त कुंआर बाप बनल बाड़। का तोहर माई – बाबू उछिल-उछिल के पेड़ा बटिहें ? तूहूँ त हमरे लेखा अपनो बाबू – माई के प्राइवेट दादा – दादी बनवल हा।’’ पमली जोरदार जवाब दिहली।
माधव भूइंया ताके लगलन। फेरू ऊ आपन छाती प हाथ राखि के कहलन, ‘‘हमार कुंआर बाप बनल सभे केहू पचा जाई । बरदासो क लीही।’’ फेनु पमली के देने हाथ उठा के बोलले, ‘‘बाकिर तोर कुंआरी माई बनल छोट लइका से लेके बूढ़ा तक केहूं पचाई आ बरदास ना करी। एहिसे कहत बानीं कि ई बाचा गिरा दे। अपना प दाग लागल छोड़ा ले। ओइसे बादो में हम तोरा से पेयार करते रहब।’’
‘‘वाह रे ! पूतवो मीठ आ भतरो मीठ। भर जिनिगी तू हमार ई सोना अइसन देहि से खेल आ हमरा से पाप करवाव। बहुते घटिया समुझ ले लहमरा के। माधव, हम हाथ जोरत बानीं। तू हमरा से बिआह क के ई आवे वाला बाचा के आपन नांव दे द।’’ पमली बहते लोर से हथजोरी कइली।
माधव कहलन कि ऊ ओइसन बदमास लइकी से बिआह ना करिहें। ओइसन लइकी के कवनो भरोसा नइखे। जब ऊ बिआहे के पहिले अपना के सउंपि देलस त बिआह भइला का बाद ओकर गारन्टी नइखे।
पमली पूछली कि ऊ दूनों जना एक दोसरा से सच्चा पेयार कइले रहे। ऊ होतना कसम – वादा खइले रहले। ऊ सभ का रहे ?
‘‘ऊ सभ तोरा के फंसावे के एगो चाल रहे।’’ माधव पान चबावत आगे कहलन, ‘‘जब हमनीं के लइका ओह लइकी से मजा ले लेबेनी जा तब ओकरा के दूध में पड़ल माछी अइसन निकालि के फेंक देबेनी जा। हमनी के लइका तू सभ लइकी से एक बेरा कह देबेनी जा कि हम तोहरा से पेयार करत बानीं त तोरा अइसन लइकी आपन सभ जमा-पूंजी दे देबेलू सन। अगर कवनो लइकी हमनी के पेयार के जाल में ना फंसेली सन त ऊ सभनी के दूसर उपाय कइल जाला।’’
‘‘त तू हमरा से बिआह ना करब ?’’ पमली खिसिया के पूछली।
‘‘एकदम ना। बाकिर फेनु कहत बानीं तू एहिजा बिना रासन के भासन मत द। घरे जाके सांति से सोचिह तब हम तोहरा के काल्हु आछा डाक्टरनी लगे ले चलब।’’ माधव घुमा-फिरा के उहे बात कहलन।
‘‘आउर बाद में हमरा के बदनाम करिह इहे नूं ?’’
‘‘बाति ना माने के इहे नतीजे होई।’’ कहि के माधव मुसुकात चलि गइले।
पमली दुखी होके बारली लगे अइली जहाँ ऊ उनुकर राह देखत रही।
बारली माधव के बारे में पूछली त पमली उनुका के गुलाब लगे ले गइली।
बारली आपन लोर लुकावते पूछली, ‘‘माधव का कहले हा ?’’
एतना सुनि के पमली बिलिख – बिलिख के रोवे लगली।
बारली समुझ गइली आ खीस में एगो कस के चमेटा पमली के गाल प दिहली, ‘‘तोहार जवानी एतना हिलकोरा मारत रहे कि तू जाके माधव जवरे पेयार में सभ कुछ क देलू। हमहूं त जवान बानीं, फिरू ? पमली, ई तू का कदेलू …।’’ बारली रोवे लगली।
‘‘माई, त हम बने के बानीं, फेरू तू काहे रोवत बाड़ू ?’’
‘‘तोहार बदनामी के चलते। तहार बदनामी हमरा से देखल सुनल नाजाई। तहार बदनामी के छिंटा हमनी सभ प पड़ी। बाकिर माधव का कहले हा ?’’
‘‘ऊ बाचा गिरावे के कहलन हा। ऊ बिआह करे से साफ मना क देलन। सभ दोस हमरे के देत बाड़े।’’
‘‘हम तहरा के पेयार ना करे के चेतवले रहीं बाकिर तू…।’’
‘‘तहार नीमन बात ना माने के इहे नतीजा भइल कि आजु हम बिना बियाहल कुंआरी माई बनि गइलीं।’’ पमली खूब रोअत रही।
बारली उनुकर लोर पोंछि के पूछली कि अब ऊ का करिहें ? ऊ जहर खाये के कहली।
बारली, पमली के हाथ आपन हाथ में लेके समुझवली, ‘‘तू मरि जइबू त तहरा बिना हम आ सँवरी कइसे जीयब जा ? बताव। तू सोच। जहर खाके मरल आसान बा बाकिर मर के जीयल बहुत मोसकिल बा। मान ल तू जहर खइलू आ भाग्य से बचि जइबू त केकरा – केकरा से आपन मरल के कहानी सुनइबू ? का सभनी से इहे कहत चलबू कि हम कुंवारी माई बनल रही एहिसे मरे के सोचले रहीं। तू त मरबे करबू बाकिर अपना जवरे ई नन्हीं चुकी जीवो के मुआ देबू।’’
‘‘तब हम का करीं ? सोचते – सोचते पागल हो गइल बानीं। कुछु नइखे बुझात।’’ पमली सिसिकत रही।
‘‘देख पमली, अभी तू घरे जा। काल्हु हम माधव के ऊँच – नीच समुझाइब। सँवरियो से ई बात कहे के पड़ी।’’
‘‘माधव तहार बात मनिहें ? सँवरियो खूब खिसि अइहें हमरा प।’’पमली डेराइल रही।
‘‘अब तहरा सभे केहू के खीस बरदास करहीं के पड़ी ।’’ बारली बोलली । फेनु ऊ पमली के हाथ आपन कपार प राखि के आपन किरिया खिअवलीं कि ऊ कुछु आपन नुकसान ना करिहें। काहे से कि एह ममिला में लइकी खुदे गरदन में फांसी लगा के मरि जाली सन।
मजबूरी में पड़ि के पमली, बारली के किरिया खइली। फेनु दूनों जानी अपना – अपना घरे चलि गइली।
राति में बारली पमली के एह मोसिबत से निकाले खातिर उपाय सोचत रही।
पमली आपन बिछवना प दूनों ठेहुना छाती से सटा के बइठल रही आ आपन गलती इयाद क के मने – मने खूब रोअत रही – ‘ई हम का करि देनीं ? जब ई बात सभे केहूं के मालूम होई त हम कतने बदनाम होखब। केहूं के मुंह देखावे के ना रहब। हमार माथ प बदनामी के टीका लागि गइल।
माधव हमरा के पेयार में हइसे धोखा दीहें, हम कबो सोचले ना रहलीं। हमरा जवरे हमार माई – बाबुजिओ के खूब बदनामी होई । होमियोपैथिक के जानल–मानल बड़का डाक्टर बचन जी के बेटी होके हम एतना खराब काम करि देनी।
बाबूजी के बदनामी हम कइसे सहब…। अब हमरा मरले में भलाई बा।’ सोचते – सोचते लगली पमली कांपे आ मरे के फैसला करि लेली।
ऊ आपन दू – तीन गो ओढ़नी एक दोसरा में बान्हि के छत पंखा से लटका देली। जइसही ऊ आपन मूड़ी मे ओढ़नी बान्हे लगली त उनुका बारली के खाइल किरिया इयाद परी गइल – ‘अगर हम मरि जाइब त ऊ किरिया बारली के पड़ी जाई। ना – ना हम ना मरब।’ पमली मूड़ी में से ओढ़नी निकालि के खूबे रोये लगली। बारली के किरिया उनुका के बचा देलस।
पमली के आठ बरिस के छोटकी बहिन सुगनी उनुका के खाये के लियावे अइली। ऊ झूठो के कहि देली कि ऊ खा लेले बाड़ी। एह हाल में उनुका खाइल सोहात रहे। भर रात ऊ डँहकि – डँहकि के रोवते रहि गइली।

दोसरा दिन बारली माधव से बात करल चहली बाकिर ऊ उनुकर कवनो बात ना सुनल चाहत रहन। कहले, ‘‘होइसन गिरल लइकी से हम कबो बिआह ना करब। जवन कहे के रहे हम पमली से कहि देले बानीं । बाचा गिरावे के उनुका लगे पइसा नइखे त हम दे देत बानीं बाकिर हम ई झंझट में ना पड़ब।’’
‘‘पमली गिरल बाड़ी त का तू नइख गिरल ? पेयार करे में झंझट ना रहे ? ओह घरी पमली तहार जान से पेयारिये रही।’’ बारली खीस में खउलत रही।
‘‘हमनी के लइका सभ लइकी के दू रूपे खिली पान समुझेनी जा। जब तकले पान स्वाद देबेला, ओंठ लाल करेला तब तक ओकरा के चबावेनी जा आ जब ओकर स्वाद खतम हो जाला त सड़क प उगिल देबेनीं जा।’’
‘‘बाह रे ! तू पमली के दू रूपे खिली पान समुझ लेल। जब तकले तू उनुकर देहि से खेलल त बड़ा नीमन आ अब ऊ कुंआरी माई बने के बाड़ी त तू उनुका के धोखा देके भागत बाड़ कि सभ केहूं उनुका प थूकी। माधव, तू हइसे पमली के जिनिगी बरबाद मत कर। उनुका से बिआह क ल।’’ कहते – कहते बारली रो पड़ली।
‘‘हम हजार बार कहनीं कि हम पमली से बिआह ना करब, ना करब, ना करब।’’ माधव गरजलन।
बारली आपन लोर पोंछि के माधव से एगो तीत बाति कहली कि अगर अइसने काम पमली के भाई उनुकर बहिन जवरे कइले रहतन त उनुका कइसन लागित ?
लहरि गइले माधव, ‘‘खबरदार ! जवन तू हमार बहिन के बारे में अइसन कहलू त। तहार जबान घिंचि देब। पमली के भाई होखित आ चाहे दोसर लइका हम ओकर खून पी जइती।’’
बारली इहे सुनल चाहत रही। कहली, ‘‘त ठीक बा। पमली के भाई तहार खून पीहें आ तू उनुकर। काहे से कि पमली के भाई आपन राखी के फरज निभइहन नू।’’
‘‘अरे जा ना, का बिना पइसा के भासन देले बाड़ू। कम बोलबू त तहरा दवाई लेखा फायदा करी। तहरा आ पमली के चुरूआ भ पानी में डूबि के मर जाइल चाहत रहे।’’ माधव मुसुका के बोलले।
‘‘आ तहरा एके बून पानी में मरल चाहत बा। एगो सीधा – साधा लइकी के आपन पेयार के जाल में फांसि के ओकरा के बिन बियाहल कुंआरी माई बना देल। का इहे पेयार ह ?’’
‘‘हँ इहे पेयार ह। आ ऊ लइका महान बुड़बक होलेसन जवन आपन पेयार खातिर सभ कुछ छोड़ि के लइकी के साथ निभावे लसन।’’ माधव ठठाके हंसले।
‘‘उहे सभ असली पेयार करे वाला होल सन। आजु तू पमली के हाथ थाम लेब त तूहूं महान हो जइब।’’ बारली कहली।
‘‘हमरा महान आ अमर नइखे बने के।’’
बारली जब सभ बाति कहि के थाक गइली त आपन दूनों हाथ जोरि के कहली, ‘‘माधव, हम तहरा आगे हाथ जोरत बानीं…।’’ फेनु उनुकर गोड़ पकड़ली, ‘‘हम तहार गोड़ पड़त बानीं तू पमली से बिआह क ल। हमार सखी के जिनिगी बचा ल…।’’ कहि के ऊ खूब रोये लगली।
उनुकर लोर से माधव के जूता – मोजा भींजि गइल। तबो माधव के बारली प मोह ना आइल आ ऊ उनुका के ठेलि के हंसते चलि गइलन।
पमली, बारली के खोजते ओहिजा अइली। उनुका के रोवते देखि के बूझ गइली। उठवली उनुका के।
बारली ओढ़नी से आंखि पोंछते उनुका के गुलाब भीरी जाये के कहली आ खुदे सँवरी लगे चलि गइली।

बारली सिसिकते सभ बाति सँवरी से बतवली।
‘‘का पमली के बाचा होखे के बा ?’’ सँवरी के करेजा प जोर से धक्का लागल, “ऊ कहवां बाड़ी ?’’
‘‘गुलाब लगे।’’
‘‘चलऽ।’’ सँवरी, बारली के जवरे चलि गइली।
ऊ खूब हाली-हाली चलत रही त बारली उनुका के टोकली, ‘‘सँवरी, तनी गते – गते चलऽ। कमजोर बाड़ू।’’
‘‘भाड़ में जाए हमार कमजोरी। पमली के जवरे अइसन हो गइल…।” सँवरी के लोर बहे लागल। उनुका के देखि के पमली रोये लगली।
उहो रोये लगली, ‘‘ई तू का करि देलू, पमली ? आजु हमरा तहरा प बहुते खीस बरल बा।’’
‘‘त तूहूं हमरा के एक चमेटा मारि द जइसे काल्हु बारली मरले रही।’’
‘‘हमरा एक चमेटा मरला से तहार ई कलंक मेट जाइत त हम तहरा के दस चमेटा मरती। तू माधव के घर के पता जानत बाड़ू ?’’ सँवरी पूछली।
बारली बोलली, ‘‘माधव के घर के पता जानिये के का होई ? ओकर माई – बाबू कहिहें जा कि पमली उनुकर लइका के बदनाम करत बाड़ी। अभी ई बात हमनी तीनों के बीच में बा अगर ई बात सभ केहू जानि जाई त पमली के जिअल दुस्वार हो जाई। सँवरी, अब तू बताव का करे के ?’’
सँवरी बाचा खतम करे के कहली।
पमली छछनि गइली। उनुका दिल में ममता जागि गइल, ‘‘हम ई बाचा ना गिराइबि। भगवान जी त हमरा के माई बने के आसिरबाद देले बानी। एकरा प हम डाक्टर के कंइची ना चलाइब। आजु कतने मेहरारू माई बने खातिर मंदिर – महजीद के नाक रगड़त बाड़ी स बाकिर नइखी सन बनत आजब हम माई बने जा रहल बानीं त सँवरी तू कहत बाड़ू कि हम एकरा के गिरवा दीहीं। ना… ना… ना हम अइसन पाप कबो ना करब।’’
‘‘ठीक बा कि तू माई बने के बाड़ू बाकिर एगो नजाइज बाचा के। हमहूं माई बने के बानीं बाकिर हमार बाचा जाइज कहाई। तू बिआह के पहिलहीं माई बने के बाडू आ हम बिआह के बाद। अभियो माधव आके तोहार मांगि में खाली एक चुटकी सेनुर डालि देस त ई बाचा जाइज हो जाई । एहिजा खाली एक चुटकी सेनुरे के खेल बा।’’ सँवरी कहली।
‘‘त ठीक बा हमही अपने से सेनुर लगा लेत बानीं…।’’ पमली के बाति प सँवरी झट से कहली, ‘‘समाज ई ना मानी। एहिजा हर लइकी – लइका से ओकर बाप के नांव पूछल जाला। बाप के नांव से ओकरा के जानल–पहिचानल जाला। हमार बात मान आ चुपचाप चल अस्पताल।’’
पमली रोअते ना कहली।
‘‘पमली, तू जवन गलती करे के रहे ऊ क दिहलू बाकिर तहरा प लागल ई दाग अभियो से मेटि जाई। तहार जिनिगी बरबाद ना होई। ई पाप खतम कर द। फेरू से तू साफ हो जइबू आ केहूं जनबो ना करी। हमनीं तीनों के बीचे ई सभ गलि-पचि जाई। अब घरे चलल जाओ। ई बात ढ़ेर बतिअवला के काम नइखे ना त केहू सुनि लीही।’’
सँवरी के कहल ई बात सचो हो गइल। पमली के बगल में रहे वाली बतकुचनी चाची सभ बाति सुनि लिहली। अब भला उनुका पेट में एतना मजिगर बात कहवां से पचे। भले ऊ आठ छीपा भात पचालेस। ई सभ कहे सुने में त मेहरारू लोग आउरी आगे रहेली।
ऊ गइली पमली के पोल खोले।
ऊ सीधे पमली के माई भिरी गइली, ‘‘कारे सुगनी के माई, तोर बड़की बेटिया कवना के बीया – बाल अपना पेट में रखले बिया ?’’
‘‘बतकुचनी चाची, तू जबान सम्हार के बात कर। पेट बिगाड़े मूढ़ी आ घर बिगाड़े तहरे लेखा बूढ़ी। चलत बाड़ू हमार बेटी के लगानी लगावत।’’ पमली के माई नागिन लेखा फुंफकरली।
तबहीं पमली आ गइली। उनुका के देखि के बतकुचनी गरजली, ‘‘पूछ आपन बेटी से। छउड़ी के छहतरी कांखि तरे जतले कस्तरी आ जाये के बाजार त चलि गइले कचहरी। पूछ एकरा से ई कवलेज जाये के बहाना आपन कवन यार से मिले जात रहे ? हमार जबान ना आपन बेटी सम्हार ?’’
‘‘हं रे पमली, ई का कहत बाड़ी ? कह दे कि ई सभ झूठ ह।’’ माई कांपते करेजा से पमली के झोरते पूछली।
‘‘ना माई सच ह…।’’ लोर गिरे लागल पमली के।
सुनते माई के करेजा दू टूका हो गइल आ बतकुचनी चाची चलली भर टोला महल्ला में पमली के पेयार मे आउर नीमक – मिरचाई लगा के बखान करे।

ऊ जेकरा से बोलतो ना रही ओकरो से पमली के खिसा कहली।
पमली के माई पहिले खूब रोअली। फेनु झाड़ू से लगली पमली के कपार प से पेयार के भूत उतारे, ‘‘खाकी, बहरवनी, कुंअर ठेली, ई का करि देलिस ? जीयते हमरा के मुआ देले… हमार मुंह प करिया पोत देलिस…। हमार सभ कुल खानदान प बट्टा लगा देले…।’’
तबहीं पमली के बाबूजी आ मूरती भइया अइलन। पमली के मारते देखि के बाबूजी, माई के डंटले कि ऊ सेयान लइकी के हेतना काहे मारत बाड़ी ?
माई आंखि में सातों समुन्दर लेले हांफते बोलली, ‘‘पूछीं आपन बेटी से का जाने कवना का साथे मुंह करिया क के आइल बिया आ ओकर चिन्हानी रखले बिया अपना कोखि में…।’’
बाबूजी के सुनि के धड़का लागि गइल। हाथ में से सभ सामान छूटि के नीचे गिरि गइल। मूरती के कठेया मारि देलस। बाबूजी के नीचे ना जमीन रहे आ ना ऊपर आसमान। ऊ त एगो लहरल आगि में खाड़ रहन जहां देहि ना जरि के लह-लह मन जरत रहे। उहो पमली के खूब मुअनी के मार मरलन। मूरती के त अपने खून गरम रहे उहो उनुका के बढ़िया से धुन देलन रूई लेखा।
पमली रोअसु आ कहसु, ‘‘बाबूजी, अब मत मार s…। भइया, मत मारअब…। गलती हो गइल…।’’
एगो कोना में पमली के दस बरिस के भाई दासू आ सुगनी चुपचाप खाड़ रहन जा। अगर उहो लोग पमली से बड़ रहित त दूनों जना आपन बड़ होखे के नमूना पमली के देखा देतन जा। छोट रहले जा एहिसे दिदिया के पिटात देखि के रोवत रहन लोग।
सगरो ई बात आगि जइसन लहरि गइल आ बूनी जइसन बरसि गइल कि पमली बिना बिआहल कुंआरी माई बने के बिया। जेकरा पास बस एक चुटकी सेनुर ना रहे।

दोसरा दिन पमली के माई तरकारी कीने गइली। तरकारी कीनत दू – चारि गो मेहरारू उनुका के देखि के कहली, ‘‘कारे डकटरवा बो, तोर बड़की छऊड़ी बिना बियाहे के मतारी बने के बिया ? हमनी के बेटी अइसे कइले रहित त ओकरा के घाठी देके मुआ देती जा। तू हमनी सभनी के खोज – खबर राखत रहिस आ तोर बेटी भीतरे – भीतरे पुआ पका देलस ओकरा के ना देखले ? तू सभनी परिवार के जहर खा के मरि जाये के चाहीं। बिना कन्यादाने कइले तू नानी बने के बाड़े नू रे…।’’ ऊ लोगिन खूबे हंसे लागल।
माई बजारे में झोरा फेंकि के रोअते भगली घरे।
बाबूजी लगे एगो अदमी दवाई लेबे आइल। कहल, ‘‘का हो डाक्टर साहेब, ई हम का सुनत बानीं। तहार बेटिया…. तोहार इजति माटिये में मिलि गइल। राम…. राम। छी…. छी…..।’’ बाबूजी आपन इजति के हइसे निलाम होत देखि के डिसपेंसरी छोड़ि के पनपनइले घरे अइले आ मेहरारू के खूबे खीस में बोले लगलन, ‘‘तोर बेटी के करतूत से हमार मूड़ी कतने नीचे होत बा। जतना लोग हमरा के परनाम डाक्टर साहबे कहत रहलन आजु ऊ सभ हमरा के देखि – देखि के थूकत बाड़े स।’’
‘‘राउरे मूड़ी नीचे होत बा कि हमरो होत बा। राह चलल मोसकिल भइल बा। हम कहत रहलीं कि जइसे सँवरी के मैट्रिक कइला का बाद बिआह हो गइल…. ओइस ही रउवो पमली के बिआह क दीहीं बाकिर रउवा त बेटी के कवलेज में पढ़ावे के तास जागल रहे। ऊ कवलेज जाके का कइलस ढीढ़ फुलवा के त आइल….।’’ माई रो-रो के कहत रही।
‘‘हम दिन भर लोग के दवाई करत रहलीं। तू घर में खाली खाये पकावे में रहि गइले ? ई ना देखले ऊ कहवां आवत-जात बिया ? ई पमलिया का बारलियो से सुन्नर बिया ? बाकिर ई हरमिनिया का कइलस ?’’ बाबूजी चिचिआत रहन।
‘‘जाके ऊ लइका के खोजीं…..।’’ माई बोलली त बाबूजी आउर खिसिया गइलन, ‘‘हम ऊ लइका के खोजे जाईं ? जो तू जो…।’’ कहि के बाबूजी आपन सभ खीस माई प उतार देलन। बीच – बचाव पमली कइली उनुको दू-चारि हाथ लागल। बाबूजी मेहरारू के चपल – जूता से मारि – पीटिके डिसपेंसरी चलि गइलन।
माई छाती फाड़ि-फाड़ि के खूब रोये लगली। पमली रोअते – रोअत सूति गइली।
माई से बेटी के अइसन बदमासी काम आ मरद के पिटाई बरदास ना भइल। ऊ मने-मने एगो भयानक फैसला करि के चुहानी घर में जाके केवाड़ी बंद क देली। फेनु आपन देहि प किरासन तेल उझिलली आ सलाई जरा के चुपचाप जरे लगली।

घर में ओह घरी केहूँ ना रहे जवन उनुका के बचावे। जब सूतल पमली के नाकि में कुछु जरे के महक गइल त ऊ हड़बड़ा के उठली। देखली की पूरा घर धुआं से भरल बा। जब ऊ चुहानी घर में खिड़की से झंकली त माई लह – लह लहरत रही। पमली खूब चिचिआये लगली आ दउड़ के बहरी से दू – चारि गो आदमी के बोलवली। हाली – हाली केवाड़ी तूरि के सभ केहूं जरत माई प पानी फेंकि के उनुका के बहरी निकललस। ऊ पूरा जरि गइल रही बाकिर उनुकर तनी-तनी सांस चलत रहे। एगो आदमी बाबूजी के लिआ के अइलन आ हाला हाली कोइला अइसन करिया दरद से तड़पत माई के अस्पताल पहुंचावल गइल। अस्पताल में पुलिसो पहुंची गइल।

माई इसरे से पुलिस के बेयान देली कि ऊ अपने से खीस में जरली हा। डाक्टर – नरस नाजुक हालत में पहुंचल माई के मलहम-पट्टी करते रहले कि ऊ दम तोड़ि देली। बाबूजी के करेजा सीसा अइसन टूटि गइल। ऊ छटपटा-छटपटा के रोअते माई के लास घरे लेके अइले।
ई बाति के पूरा हाला मचि गइल। जे – जे सुनल सभे दउरल। सँवरी – बारली भी दउरली ।

बाबूजी गस्ती के मारे बेरि – बेरि गिरि जात रहन। रोअल – पिटलके आवाज से घर भरि गइल रहे। घर में अभी तकले धुआं भरल रहे जेकरा से सभे केहूं खांसत रहे।
बाबूजी जब चेतले त जरल मेहरारू के पकड़ि के छछनि-छछनि के रोये लगलन। एक प एक उनुकर नजर रोअत पमली प गइल। ऊ पमली लगे अइलन आ उनुकर दूनों गालि प तड़ाक – तड़ाक मारे लगले, ‘‘एकरे चलते हमारा मेहरारू मरि गइल…। ऐ सुगनी के माई, तू काहे के जरि के मरले हा, ई बदमसिनिया के जरा देतिस….।’’
दू गो आदमी बाबूजी के पमली लगे से हटइलन। तबहीं मूरती आके पमली के झोंटा पकड़ि के मारे लगले, ‘‘अरे, सुअरी, तोरे बदमासी के चलते आजु हमार माई मरि गइल।’’
ओहे घरी सँवरी – बारली घर में घुसली जा। पमली के मारते देखि के झटसे सँवरी मूरती के हाथ पकड़ि लिहली, ‘‘ई का करत बाड़ मूरती भइया, सेयान बहिन के मारत बाड़।’’

‘‘ई हमार बहिन एकदम ना हिय। जवन लइकी के आपन बाप – माई के इजति के खेयाल ना होखे, ऊ लइकी ? हमार खाली सुगनी बहिन बिया। बारली, तू हूं त कवलेज में पढ़े लिस बाकिर ई कुकुरी का कइलस ?’’ नीचे हाथ करि के कहले मूरती।
‘‘भइया, तू माधव के खोजे ना गइल हा ?’’ बारली पूछली।
‘‘हम काहे के ओकरा के खोजे आ चाहे ओकरा से कुछु पूछे जाईं। ई खुदे नू ओकरा लगे गइल रहे। एकरा जब इहे करे के रहे त हमनी से कहित कि हमार बिआह करा द लोग। एकरा बिना लावा मेरवले हम मामा बने के बानीं, ई कतना दुख के बात बा। हमनी केहूं के ई मुंह देखावे के ना छोड़लस। अरे सुअरी, अब तू कबो हमरा के राखी मत बन्हिहें। जइसे माई मरि गइलजो अइसे तू हूं मरि जो।’’ मूरती पमली के मरलन एक मुक्का।
‘‘ठीक बा, हमरे चलते नू माई मरल हिया। अब हमहूं मरि जात बानीं।’’ कहि के पमली किरासन तेल के डिबा उठा लेली। दउड़ के सँवरी डिबा छिनली आ बारली सलाई।
‘‘एगो त तू मरबू आ ऊपरे से अपना पेट में के ई बाचा मिटइबू।’’ सँवरी पमली के हाथ पकड़ि के डंटली।
दासू आ सुगनी रोअते ओहिजा अइले। पमली के पेट प हाथ राखि के कहलन जा, ‘‘दिदिया, जइसे माई मरि गइल ओइसे तू मत मर। हमनीं के दूनों केहूं तोर बबुआ जवरे खेलब जा। कब होई तोर नयका बबुआ ?’’
पमली भाई – बहिन के पकड़ि के खूब रोये लगली।

जवन बबुआ के आवे के दुःख में उनुकर नानी अभी – अभी जरि के मरली हा आ दोसरका बारी पमली के रहे। नयका बबुआ के एह धरती प आवे में अभी कतने महीना बाकी रहे आ दासू – सुगनी उनुका जवरे खेले के असरा लगवले रहन जा। बाकिर ऊ जाइज का साथे खेलतन जा कि नजाइज का साथे ? जेकरा सारा दुनिया नजाइज कहत रहे।
पमली माई के भिरी आके रोअल चहली त बाबूजी गरजलन, ‘‘खबरदार ! जवन तू आपन गंदा हाथ से हमार मेहरारू के छुअले त तोर हाथ काटि देब….।’’
पमली, सँवरी के पकड़ि के आपन माई के मुअला के सभ लोर गिरा देली। सँवरी – बारली के भी लोर गिरे लागल।
माई अपने से जरल रही बाकिर उनुका के फेरू सास्तर विधि से जराके आग, पानी, हवा, जमीन आ आसमान में मिलावल गइल।
पमली के देखते बाबूजी – भइया के खून खउल जात रहे। जब तकले ऊ लोग घर में रहस पमली लुकाइल रहत रही आ जब दूनों जना बहरी चलि जास त ऊ हाली-हाली घर के सभ काम – धान्हा करि के फेनु लुका जात रही।
एक सांझि के पमली सूखल कपड़ा लियावे छत प गइली। ओह घरी अगल – बगल के मेहरारू आपन-आपन छते प रही जा। उनुका के देखि के ऊ सभ उनुकर बकर-बकर मुंह लगली जा ताके। हंसते एक – दू गो गाभियो मरली, ‘‘देख रे फलनवाबो, नाजाइज बाचा के पयेदा करेवाली नाजाइज मतारी छत प आइल बिया। एकर चाल-रहन से अखरेरे एकर मतारी मरि गइल।’’

ऊ लोग पमली के एह से देखत रहे कि कहीं उनुकर गोल मुंह प नाजाइज के मोहर आ कुंआरी माई के ठप्पा त नइखे लागल। उनुका प नाजाइज के लेबुल त नइखे सटल। हमनी के दू गो आँख बा ओकर तीन–चारि गो होई। हमनी के दाल-भात खानी जा ऊ धूर खात होई। हमरा ओकरा बीच कवनों त फरक होई ? कवनों त सबूत मिली, जेकरा से ई पता चली कि ऊ कुंआरी भा बिन बिआहल माई बने के बिया।

पमली के भिरी ओह घरी एके चीज ना रहे लेबुल, साइन बोर्ड ! जवन छत प खाड़ सभ मेहरारू के मांगि में सजल रहे। जाइज होखे के प्रमाण पत्र ! एक चुटकी सेनुर ! जवन पमली डाक्टर के बेटी होके आपन दउलत से ना कीन सकली। चुटकी भ सेनुर के कीमत केतना होला आजु उनुका बुझा गइल रहे।

ऊ छत प चुक्का-मुक्का बइठि के सभ कपड़ा उतरली आ ओइसही बइठले – बइठले नीचे आ गइली। कपड़ा फेंकि के रोये लगली डहकि – डहकि के।
संजोग से ओही घरी सँवरी-बारली उनुकर लोर आ गइली जा पोंछे।
पमली रोअते कहली कि सभे केहूं उनुका के देखि के नीक – जबुन सुनावत बा। ऊ बदनांव हो गइल बाड़ी। एहिसे उहो दूनों जानी उनुका लगे मत आवस जा।
‘‘त का हमनी के तहरा के असहीं छोड़ि दीही जा ?’’ बारली उनुकर लोर पोंछते कहली।
‘‘हं, छोड़ि द लोग।’’
‘‘हमनी के तीनों केहूं सचा सखी बानी जा। एक – दोसरा के हर सुख – दुःख में साथे रहे के किरिया खइले बानीं जा। मरला का बादो हमनी तीनों का साथ ना छूटी।’’ संवरी, पमली के दूनों हाथ पकड़ि के बोलली।
‘‘पमली, हमनी के सखियारो तहरा से बा ना कि तहार धन – दउलत आ ई तीन ताला घर से । इहां तक कि तहार देहि प जवन ई महंगा समीज – सलवार बा ओकरो से नइखे। खाली तहरा से मन मिला के सखियारो बा।’’ बोलली बारली।
सँवरी कहली कि ऊ आ बारली पमली खातिर सरग छोड़ि दीहें जा बाकिर नरक ना।
पमली पूछली – ‘‘काहे ?’’
सँवरी पमली के आंखि में आंखि डालि के बोलली, ‘‘अगर हमनी के सरग मिलि जाई आ तोहरा नरक त हमनी के सरग के सुख छोड़ि के तहरा लगे नरक में आ जाइब जा बाकिर अगर तहरा सरग मिलि जाए आ हमनी के नरक त हमनी के नरक छोड़ि के तहरा लगे ना आइब जा। जानि जाइब जा कि हमनी के करम के अनुसार से नरक मिलल बा।’’
‘‘त का हम तू लोग बेगर सरग में रहि जाइब ? हमनीं के सरग चाहे नरक में जहवां रहब जा एके जवरे रहब जा। सँवरी, बारली तू दूनों जानी कतने आछा बाड़ू जा।’’ कहि के पमली दूनों जानी के अंकवारी में भरि लेली।
सँवरी पमली से बाचा गिरावे के पूछली।
‘‘इहे हं – ना के फेर में त हम पड़ल बानी।’’ कहते पमली अलगे भइली।
फेनु बारली से कहली, ‘‘बारली, तू हमरा लेखा कवनो अइसन – ओइसन काम जन करिह ना त हमनीं तीनों केहूं के जिनिगी में गरहन लागि जाई।’’
‘‘हं बारली, पमली ठीक कहत बाड़ी। तू केकरो पेयार में मत पड़िह।’’ सँवरी बारली के लेके चिंता में पड़ि गइली।
‘‘सँवरी, पमली, हम कबो पेयार में ना पड़ब। बिस्वास कर। बस, हमरा पुलिस अफसर बने द तब देख हम तू लोग के कइसे नेयाय दिवाइब। पमली, तू जलदी से आपन कवनो फैसला कर।’’ कहि के बारली अपना घरे चलि गइली।
बाद में सँवरियो अपना घरे चलि गइली।

( 10 )

दू-चार दिन के बाद बारली, पमली से भेंट करे के जात रही त उनुकर माई उनुका के जाये से मना कइली – ‘‘देख रे बारली, तू ऊ दूनों बदमासिन सँवरी आ पमली से मिले मत जो। एगो के मरदे छोड़ि देलस आ दूसर की के बचे होखे के बा। ओकर खेलकट से ओकर मतारी जरि गइल। हम ओइसन लइकी से बोलतीं ना।’’
‘‘हम तहरा लेखा आ दोसरा लइकी लेखा नइखीं जवन आपन सखी के सुख में साथ निभावे आ दुख पड़ला प भागि जाए। हम हर हाल में आपन दूनों सखी के साथ देब। सभ केहूं पमलिये के दोस देत बा केहूं माधव के ‘कुंआर बाप’ कहते नइखे। आखिर का वोजह बा ? ऊ लइका ह एहीसे ?’’ बारली जबान लड़वली।
‘‘चुप, एकदम चुप रह।’’ माई गरजली।
ई सभ बाति बारली के फुआ लता सुनत रही। ऊ दू लोग के बतकही में का बोलसु ?
बारली उनुका से कहली, ‘‘फुआ, सुनत बाड़ू माई का कहत बाड़ी ?’’
‘‘भउजी, का तूहूं गंवारिन लेखा बोलत बाड़ू। ई पमली से मिले जात बिया त एकरा के जाये द। जो बारली, बाकिर जलदिये अइहें।’’ लता के बात सुनि के बारली झट से चलि गइली।

‘‘लता, तू एकदम से बारली के बहका के रखले बाड़ू। फुआ – भतीजी के दिमागे एक बा। तू त बिआह करत नइखू आ बारली के खाली पढ़े के बहकावेलू। सुनल s, तू बिआह कर चाहे ना बाकिर हम बारली के बिआह क देब ना त इहो कवनो के पेयार में पड़ि जाई।’’ माई खीस में कहत रही।
‘‘भउजी, चरगोड़वा बन्हाला दुगोड़वा ना। कब तकले तू बारली के रोकबू ? तू ओकर बिआह क के ओकर सपना तूरबू ? ऊ पढ़े में कतना तेज बिया। तहरा अपने बेटी प बिस्वास नइखे ? बारली कबो कवनो लइका से पेयार ना करी, ई हम कहत बानीं । हम नोकरी लगला का बादे बिआह करब। सँवरी लेखा हमरो मरद हमरा के छोड़ि दीही त का तू हमरा के जिनिगी भर रखबू ?’’ लता चट से जवाब दिहली।
माई कहली – ‘‘कतनो पढ़ला का बाद आखिर चुल्हवें फूंके के पड़ेला ।’’
‘‘अब गैस प खाये बनत बा, भउजी।’’ लता हंसि के कहली।
‘‘तू त हमार सभ बात मजाके में उड़ा देबेलू।’’
‘‘त हम तहरा से लड़ीं ? फेरू हमरा के भोरे – भोरे बना के खिआई के ?’’ लता के बाति प माई झनकि के चलि गइली।

एक घंटा हो गइल रहे बारली ना आइल रही। माई लता प खिसिआत रही।
‘‘अरे, ऊ आ जाई….।’’ लता के कहते – कहते में बारली आ गइली।
उनुका के देखि के ऊ कहली, ‘‘ल भउजी, तहार एकलउती बेटी आ गइल। ई बाड़ा ढ़ेर दिन जीही। नांव लेते-लेते आ गइल।’’
‘‘अब कबो पमली लगे जइहे मत।’’ माई बारली के चेता के चलि गइली।
बारली लता के धन्यवाद कहली। लता पमली के पूछली समाचार।

बारली बतवली कि पमली खाली रोअत रहत बाड़ी। माधव कहूं भागि गइल। फेनु ऊ पूछली कि सभे केहूं पमली के ही काहे दोष देत बा ? का सभ लइकी पेयार में माई बनि जालीसन ?
‘‘देख, बारली, हमनी के ई समाज पुरुष परधान बा। एहिजा कवनो दोष लइकी आ अवरते प लागेला। लइका आ पुरुष साफ बचि जा लनसन। सभ पेयारपमली लेखा ही ना होला। केहू – केहू के पेयार सचो होला। जब लइका-लइकी पेयार करेला तब ऊ एक दोसरा के पेयार में आन्हर हो जाला। जइसे सूरज के रोशनी में अन्हारा डूबि जाला ओइसे परेमी – परेमिका एक दोसरा के पेयार में डूबि जाला। ऊ लोग के सागरो के गहिरा कमे लागेला। आ जब ऊ लोग सच के भूइंया प अइहें त कहिहें कि हमनी के गलती क देनीं जा। जवन साचा परेमी होलन आपन परेमिका के जान से बढ़ि के पेयार करेलन ऊ आपन गलती मानि के परेमिका से बिआह क के उनुकर जिनिगी खुसी से भरि देबेलन। बाकिर जवन लइका झूठा पेयार करेला ऊ सभ दोस लइकिये के देबेला जइसे माधव पमली के देलस।
पेयार दू तरह के होला। सांचा पेयार आ झूठा पेयार। सांचा पेयार जहवां मन के गहिरा से होला उहे झूठा पेयार तन के पावे खातिर होला। सांचा पेयार निस्वारथ होला । ओकरा में तेयाग रहेला । परेमी – परेमिका एक – दोसरा खातिर समरपित रहेला। बाकिर झूठा पेयार में काम आउर वासना छिपल रहेला। एहमें स्वारथ रहेला। आजु-काल्हु के पेयार एक रात बितावल हो गइल बा। असली परेम त किरिसना आ राधा कइले रहले। ई दूनों जना के मन के तार एक दोसरा से जुड़ल रहे। इहे दूनों जना सांचा पेयार करे के उदाहरन देले रहले जा। बाकिर आजु पेयार, पेयार ना होके तन के आगि बुतावे खातिर एगो राह बनि गइल बा, जवन काम आउर वासना में लेपेटाइलबा।’’ लता बतवली।
मूड़ी डोलावते पूछली बारली, ‘‘फुआ, कहीं तू हूँ त कवनो लइका से…?’’
‘‘भाक पागल, जरूरी बा जे पेयार करेला उहे ई सभ जानी, दोसर केहूं नइखे जान सकत ? तू ना फिलिम देखेलिस आ ना पतरीका पढ़ेलिस। एहीसे तू कुछु नइखिस जानत।’’ बारली के माथा ठोंकली लता।
‘‘आछे फुआ, तू दहेज के पक्ष में बाड़ू कि विपक्ष में ?’’ बारली पूछली।
‘‘हम त सुरूये से दहेज के विरोध करिला। ओइसे भी हम बिआह उहे लइका से करब जवन दहेज के खिलाफ होखे। उनुका दिल में पइसा ना मेहरारू खातिर पेयार भरल होखे।’’
बारली के मन कुलबुलाइल कि ओइसन दहेज विरोधी उनुकर फूफा मिलिहें ?
‘‘आपन जात में ना त दोसर जात में जरूरे मिलिहें।’’
‘‘का दोसर जात ?’’ बारली मुंह बा देली।
‘‘हमनी के माथा प लिखल बा कि हमनी के कवन जात के हईं जा ?’’लता आपन माथ प हाथ राखि के पूछली।
‘‘एकदम ना।’’
‘‘त फिरू। जात का धरम का बा, सभे के मालिक एक बाड़े, धरम के ठेकेदार हमनी के अलगा बंटले बाड़े, एहमें हमनी के का कसूर बा ?’’ लता कहली।

फेनु ऊ बारली के मिठाई खाये के दिहली। उनुकर पांच गो सखी रही। एक जानी के हाले में नोकरी लागल रहे। इहे खुशी में उनुका मिठाई खाये के मिलल रहे।
‘‘फुआ, तू त डबल एम0 ए0 पढ़ल बाड़ू। तहार कब नोकरी लागी ?’’मिठाई खाते पूछली बारली।
‘‘बस तुरन्ते लागे वाला बा। हम आपन पहिलका कमाई से तोरा के एगो आछा समीज-सलवार कीनि देब। आछा, अब तू आपन पढ़ाई प धेयान दे । तुरंते बी0 एस0 सी0 प्रथम के परीक्षा होई । एह में तोरा आउर जादे नबंर लियावे के पड़ी। तब नू तू आई0 ए0 एस0 अफसर बनबे। खाये-पीये प धेयान देत बाड़िस कि ना ? आ रोज दउड़ेलिस ?’’ लता बारली से उनुकर पढ़ाई के बारे में पूछे लगली।
‘‘फुआ, हम खाये प त पहिलहीं से धेयान रखले बानीं । रोजीना दउड़िला आ रस्सी फानिला त हम तहरा से बड़ लागत बानीं। हम तहरा के तोप देनीं।’’ लता से कान्हा मिलावते बारली कहली।
‘‘बढ़िया नू बा। तू जतने लंबा-चउड़ा रहबे ओतने आछा रही। जब तू पुलिस बनि जइबे त हम तोरा के सेलूट करब।’’
‘‘फुआ, हम तहरा से छोट नू बानीं । ’’ बारली के नादानी प लता के हंसी आ गइल, ‘‘अरे, पागल, हम तोर पुलिस के वरदी के नू सेलूट करब। बाकिर एगो बात समुझ ले। ईमानदारी आ सच्चाई के राहि प चलिहें। भ्रष्ट पुलिस कबो जन बनिहे। जब तू पुलिस के वरदी पहिनबे त सभ लोग के रछा के भार तोरे ऊपरे रही। एहिसे सभे के रछक बनिहें आ भछक के जमलोक भेजि दीहे ।ना त आजु-काल्हु के पुलिस वरदी त पहिन लेत बाड़े बाकिर पुलिस के मान-मरजादा, इजति रुपिया के थाक प बेचि देत बाड़े जा।’’

‘‘फुआ, हम पुलिस बने के सपना त लइकाइंए से देखत बानीं। खाली हमरा पुलिस बनला का देरी बा। फेरू देख हम कइसे सभ गुंडा-बदमास के ठीक करत बानीं। ईमानदारी त हमरा खून में दउड़ेला। हम तहार सभ बाति इयाद राखब। तू कतने आछा बाड़ू। हमरा के अतना समझावेलू।’’ बारली लता के हाथ पकड़ि के बोलली।
‘‘आछे-आछे, ढ़ेर हमरा प चीनी मत ढ़ार।’’ लता हाथ छोड़वली।
‘‘काहे फुआ, तहरा प चूटी चहरे लगिहेंस ?’’ बारली ताली पीटि–पीटि के लगली खूब हंसे।
‘‘कतने दिन का बाद तू हंसले बाड़े। ना त सँवरी आ पमली के लेके त तू हंसले छोड़ि देले रहिस।’’ लता कहली त बारली उदास हो गइली । उनुका के उदास देखि के लता बारली के गुदगुदी करि के फेनु हंसा देली आ खुदो हंसे लगली।
*****

बारली जोर-सोर से परीछा के तइयारी में जुटि गइली।
राति में बारली के चाचा दू गो आदमी जवरे अपना लइकी के खातिर लइका देखे उनुका घरे आवे के रहन। बारली के पिताजी बिआह शादी के बात चलवले रहले । हित-नाता के खाये बनावे के टटमंजाल होत रहे ।
बारली के माई मसाला पीसे गइली त हरदी आ ललका मिरचाई ना रहे। सांझि के बेरा बारली नोट्स लिखत रही। माई उनुका के सई रुपिया के नोट देके कहली कि ऊ हाली से सई ग्राम हरदी, सई ग्राम ललका मिरचाई, एक पाकिट घंटिया वाला सेवई आ एक किलो चीनी कीनि के लियावस।
बारली जाये से मना क देली।
माई खिसिया गइली, ‘‘तू सखी से मिले खातिर त बिना चपले के चलि जइबे बाकिर तोरा कवनो काम करे में त मने ना लागेला। जो हाली से बजारे, हमरा मसाला पीसे के बा। तुरंते तोर चाचा अइहें।’’
‘‘हम ना जाइब। सरवन भइया चाहे जीतन भइया के भेजि द। तू हमरा पढ़ही के बेरि काम अर्हावेलू ।’’ लिखते कहली बारली।

‘‘सरवन बबुआ आ जीतन घरे नइखसन। जो बबी, सउदा लिया दे ना। माई के कहना काहे नइखिस मानत ? खाये बनावे में कुबेरा होता। हमार ठेहुना में दरद ना भइल रहित त हमही बजारे चलि जइती।’’ बीचे में बारली के नानी चाउर बिनते कहली।
बारली नानी के बाति मानि गइली। ऊ आपन कापी-किताब ओसइ ही खुले छोड़ि के रुपिया लिहली आ ओढ़नी ओढ़ि के जाये लगली।
‘‘बारली, तोरा इयाद बा नू का-का लेबे ? लुती लेखा जो आ लुती लेखा आव।’’ माई कहली त बारली ‘हं-हं’ कहते बहरी निकलि गइली।

बारली नगीचे के एगो बनिया के दोकान में गइली। ऊ दोकनदरवा चाय – पानी पीये गइल रहे। माई हाली से मसाला कीनि के लियावे के कहले रही एहिसे बारली ऊ दोकनदरवा के असरा में ओहिजा ना रूकली। ऊ दोसर दोकान देने चलि गइली। ऊ दोकान दूर रहे।
बारली जब दोकान में पहुंचली त ओह घरी दू गो लइका समान लेत रहसन। बारली दोकानदार से कहली कि पहिले ऊ उनुके के समान दे देस।
सुन्नर बारली के पहिलका हाली आपन दोकान में आइल देखि के दोकनदार बिटेसवा के मन बारली प लोभा गइल।
ऊ कहलस, ‘‘अभी गोदाम में से सेवई आ मिरचाई निकाले के पड़ी तब तकले हिन्का लोग के हम समान दे दीही।’’
‘‘तोहरा लगे होका सेवई आ ऊ बोरा में ललका मिरचाई बा।’’ बारली अंगुरी उठा के कहली।
‘‘ई बढ़िया नइखे।’’ झूठ कहि के बिटेसवा दूनों लइका के समान देबे लागल। दूनों लइका आपन-आपन समान लेके चलि गइल सन।
अब ओहिजा खाली बारली आ बिटेसवा रहे। बिटेसवा गंजी आ लूंगी पहिनले रहे। ऊ जानि-बुझि के पीयर-पीयर हरदी आ आटा लागल आपन गंजी के ऊपरे पेट प चढ़ा देलस आ बारली के ऊपरे से नीचे ताकते मुसुकात आपन लूंगी कस के बान्हे लागल।
बारली गुरूनइली, ‘‘तू हमरा के का ताकत बाड़ ? हाली से समान द।’’
‘‘हम तोहरा के कहवां तिकवत बानीं ? तोहार बार बड़ी करिया आ मोटहन बा। कवन सेम्पू से बार मिसेलू ? हमहूं उहे बेचब। बारली के डांड़तकले कुचु – कुचु करिया आ भर मूठा के बान्हल एगो चोटी के देखि के बिटेसवा मुसुकाते पूछल।

‘‘गोबर से धोयेनीं। तू समान देब कि हम जाई ?’’ बारली खीसे जाये लगली।
‘‘आछे रुपिया द। पइसा काटि के देत बानीं।’’ बिटेसवा आपन दहिना हाथ पसार देलस।
बारली जब ओकरा के रुपिया धरवली त रुपिया लेत ऊ लोहा के कड़ा पहिनले उनुकर हाथ के पकड़ि लेलस। बारली खीसी भूत होके एक झटका से आपन हाथ खिंचली आ आव देखली ना ताव एगो कस के चमेटा बिटेसवा के धरा देली, ‘‘तू एहिजा दोकानदारी करे के बहाना बदमासी करत बाड़े ? तोरा के त जेहल में भेजे के चाहीं।’’
चमेटा खाते बिटेसवा छनछना गइल। ओकरा आसा ना रहे कि बारली ओकरा प हाथ छोड़ि दीहें। ऊ आपन बेइज्जति ना सहल।
‘‘हमार रुपिया दे। हम तोर दोकान से सामान ना लेब।’’ बारली आपन रुपिया मंगली।
‘‘हं देत बानीं।’’ बिटेसवा मने – मने एगो भयानक बात सोचत बोलल।
पूरा सांझि हो गइल रहे। बिटेसवा के दोकान सुनसान जगहा प रहे। सड़क प एको आदमी आवत-जात ना रहे। बारली कुछु समझती कि एकरा से पहिले बिटेसवा बिना एक छन गंववलें बारली के मुंह चापि के घसिटते गोदाम के भीतरे ले जाये लागल।

बारली के त होशे बिगड़ि गइल। ऊ धड़कत करेजा से आपन मुंह प से ओकर चउड़ा हाथ के जोर – जोर से हटावे लगली। बिटेसवा पहलवान लेखा लंबा – चउड़ा रहे। ऊ एतना बरियारी से बारली के मुंह चपले रहे कि ऊ उजबुजा गइली। पसेना से नेहाइल उनुकर साँस ऊपरे – नीचे होत रहे । ऊ मुंह से सोचत रही कि चिचिआईं बाकिर ऊ…ऊ करते रहि गइली। ऊ कतनो हाथ – गोड़ पटकत अपना के ओकर करिया-करिया मोटका हाथ से छोड़ावते रहि गइली बाकिर सब बेकार भइल।
बिटेसवा बारली के गोदाम के भीतरे ले जाके हाली से आपन दू गो गमछी से उनुकर मुंह-हाथ आ गोड़ बान्हि के बहरी आइल आ गोदाम के केवाड़ी बंद क देलस। बारली के घसिट के ले गइला से दोकान में के राखल दूनों तरफ के समान छितरा के भूइंया पर गिरल रहे।
बिटेसवा ऊ गिरल समान प दउड़ के दोकान में आइल। सड़क प एने-ओने तकलस कि केहूं ओकर दोकान के देने आवत त नइखे। फेनु झटसे ऊ दोकान के लोहा के सटर गिरा के भीतरे से ताला बंद क के दोकान में के जरत उजरका मरकेरी के बुता देलस। फेरू हांफते टर्च ले ले गोदाम के भीतरे गइल आ ओकरो केवाड़ी भीतरे से बंद क देलस।
बिटेसवा के भीतरे आवल आ केवाड़ी बंद करत देखि के बारली थर – थर कांपत लोर गिरावते देवाल में सटि गइली।
गोदाम में पहिलही से ललटेन जरत रहे। बिटेसवा ललटेन के बाती के आउर ऊपरे उसुका देलस। जेकरा से सभ चीज एकदम साफ – साफ लउके लागल। बारली डेराइल आंखि से चारू ओरि देखली। बोरे-बोरे आटा, चाउर, चीनी, दाल, मर – मसाला आ साबुन – सोडा से बड़हन गोदाम भरल रहे।

जहवां बारली देवाल में सटल रही ओहिजे तीन – चार बोरा ललका मिरचाई राखल रहे। जेकरा गमक से उनुका सुरहुरी चढ़ि गइल रहे। उनुकर मुंह बान्हल रहे एहिसे ऊ पूरा खांस ना पावत रही।
बिटेसवा हंसते बारली के गमछी खोल देलस। गमछी खुलते बारली बिटेसवा के जोर से धसोर के गोदाम में एने-ओने भगली। बिटेसवा चीनी के बोरा प धड़ाम से गिरि गइल। बोरा के मुंह खुलल रहे। जेकरा से सभ चीनी भूंइया में छिंटा गइल। बिटेसवा हाली से उठल आ हाथ-गोड़ में के सटल चीनी के झारि के बारली के पकड़े खातिर दउड़ल। घबराइल बारली आंखि में लोर लेले कभी एने भागसु कभी ओने। बिटेसवा उनुका लगे ना पहुंचे एहिसे ऊ सब आटा चाउर आ दाल के बोरा ओकरे देने गिरा देली।

बिटेसवा प त सैतान चहरि गइल रहे। ऊ दाल, चाउर आ आटा के लतमंजन करत बारली के पकड़ि लेलस, ‘‘ओह घरी तू हमरा के मरलिस आ अब हमार हेतना चीज जियान करि देलिस। आजु हम तोरा के त आछा सबक सिखाइब।’’
‘‘भइया, हमरा के छोड़ि द। हम तोहरा से माफी मांगत बानीं। तोहार जेतना समान हम जियान कइले बानीं ऊ सभनी के पइसा दे देब। बाकिर हमरा के जाये द। हमार माई हमरा आवे के असरा देखत होइहें । हमरा पढ़े के बा। हमरा के जाये द…।’’ बारली गंगा – जमुना के लोर गिरावते गिड़गिड़इली ।
‘‘तोरा अइसन सुन्नर लइकी आजु हमरा हाथ में आइल बिया आ हम तोरा के असही जाये दीहीं।’’ कहि के बिटेसवा बारली के गाल चूमि लेलस।
बारली खीस में ओकर हाथ आपन दांते से काटि के ओकरा के फेनु धंसोरली आ जोर -जोर से केवाड़ी पीटि के खूब चिचिआये लगली, ‘‘बचाव लोग…. बचाव लोग…. ई बदमसवा कुतवा से हमरा के बचाव लोग ….।’’
बारली के रोआई से भरल आवाज गोदाम के भीतरे गउंजा के रहिगइल।

बिटेसवा के दांते कटल हाथ बहुते जोर से लहरे लागल। ऊ खीस में बारली लगे आइल आ उनुकर चोटी पकड़ि के एगो कस के चमेटा उनुका के मरलस, ‘‘साली…।’’
मरदानी हाथ के चमेटा बारली से ना सहाइल। ऊ धड़ाम से भूंइया प गिरि गइली, ‘‘भइया…. भइया, हमरा के जाये द भइया। हम बदनांव हो जाइब भइया…।’’ कहि के ऊ बिलिख पड़ली।
‘‘अरे, हम तोरा के एहिजा भर राति थोरे राखब। बस तोरा जवरे कुछु देर रहब। बकरी अइसन मेमियो मत आउर हमार बाति मानि जो। बस हमरा के अपना बना के खुद के सउंपि दे। का कहीं तोर ई सुघर-सुघर गोर देहि हमार अजबे मन मोह लेले बा। अइसन चिकन-चिकन देह त छव महीना पहिले बिआह भइल हमार मेहरारूओ के नइखे।
तोर हाथ सेमर के रूई लेखा मोलायम आ तू मूरई लेखा गोर बाड़े। आम के फांक अइसन ई तोर बड़की – बड़की आंख, बिना ओंठ लाली लगवले तोर ओंठ एतना मस्त-मस्त लाल बा कि हम का कहीं। तोरा में एतना खून के दउरान बा कि ई तोर गोर-गोर देहि में कतहूं-कतहूं लाल के झाक लउकता। तोरा देहि में तनी सुन सुई गड़ा दिहल जाई त भक से खून फेंकि दीही। बस रानी, आजु तू हमरा के मउज करा दे।’’ बिटेसवा बारली के हाथ पकड़ि के बोलल मुसुकात।
‘‘ई तू का कहत बाड़ ? हम तोहार बहिन जइसन बानी, भइया। तोहर त खुदे मेहरारू बिया। हमरा के जाये द…।’’ बारली बहते लोर से आपन हाथ छोड़वली।
बिटेसवा खूबे हंसे लागल आ बारली के ओढ़नी छिनि के फेंकि देलस।
ऊ आपन लाज बचावत आपन देहि के पूरा शक्ति से बिटेसवा के गोड़ प कसके मरली आ फेनु ओहिजा से सभ भगवान के गोहार लगावते भगली, ‘‘हे किरिष्ना जी, हमार इज्जति बचाईं… हे देवी दुरगा ई पपिया से हमार लाज बचाईं…।’’
‘‘अरे दवापर जुग में ऊ किरिसनवा जइसे दुससना से दोरपतिया के इजति बचावे आइल रहे ओइसे हमरा से तोर इजति बचावे ऊ किरिष्नवा ई भठजुग आ अन्हरिया गोदाम में ना आई। तू चाहे कतनो करेजा फारि-फारि के चिलो।’’
बिटेसवा सरियावल साबुन – सोडा प गिरि के कहते उठल आ हाथ– गोड़ सोझ करि के बारली के पकड़ि के आपन अंकवारी में भरि लेलस।

ऊ जइसे – जइसे बारली के छूअत रहे तइसे – तइसे बारली बिना पानी के मछली अइसन छटपटात रही।
बारली कतनो दिमाग से तेज रही बाकिर ऊ बिटेसवा के देहि के शक्ति का आगा फेल हो गइली। ऊ चिल्लात रही, लोर गिरावते तड़पत रही बाकिर बिटेसवा उनुकर सुन्नरई प मोहर लगावत गइल आपन दस्तखत करत गइल।
आखिरकार ललटेन के रोसनी में बिटेसवा बारली के इजति लुटिये लेलस।

आजु के लइका आ मरद के का भइल बा जवन आपन काम वासना के चलते आजु हर लइकी आ मेहरारू के इजति लूटत बा। इहे ऊ धरती नू ह जहवां सीता अउरी दुरगा के पूजा होला। आ आजु एगो पुरुष एगो लइकी के इजति प हाथ डाल डकइती करत आपन काम का आगा मरद होखे के एहसास करवावत बा। जवना के मेहरारू बिया ऊ एगो नाजुक लइकी का साथे, छिः।

एहिजा हमरा लिखे में लाज लागत बा त केहूं के करे में लाज काहे नइखे लागत ? काहे कि ऊ मरद ह ? एगो लइकी के दरद कवनो लइकी आ मेहरारू ना जानी त लइकी-मेहरारू होखला से का फायदा ? आपन दिल के टुकड़ा – टुकड़ा क के आंखि में लोर भरि के हम आपन कलम से बारली के इजति तार – तार करत बानीं। रउवा सभे लोग ई सोचि, ई गहिरा में डूबि के देखीं आ खुद अपना के बारली लगे राखि के देखीं तब पता चली कि जेकरा जवरे ई घटना घटेला ओकर करेजा प केतना बड़का दुख के पहाड़ टूटेला। ओकर परिवार वालन प का बीतेला। हमरा लिखे में आ रउवा सभनी के पढ़े में लाज आवत बा बाकिर केहूं के ई घिनौना काम करे में लाज काहे नइखे आवत ? काम आउर वासना आजु हर मानव के दानव बना देले बा आ ऊ दानव ह के आजु के लइका – मरद !

बिटेसवा के जब मन भरि गइल तब बारली से कहलस, ‘‘जो तोरा के छोड़त बानीं। बाकिर तोर जवानी एतना मस्त बा कि हमरा तोरा के छोड़े के मने नइखे करत।’’
बारली रोवते ओकर गोड़ प गिरि गइली, ‘‘अब तू हमार इजति लूटिये ले लीस त अब हमरा प एतना दया कर दे कि हमरा के मुआ दे। अब ई जिनिगी कवन काम के बा जेकरा हम केहूं के मुंह ना देखाइब।’’

बिटेसवा बारली के उठावते कहलस, ‘‘ई बलात्कार थोड़े ह, ई त मरद – मेहरारू के बीच के अनोखा मिलन ह। हम तोरा से त पहिलहीं कहनीं कि तू अपना के संउपि दे बाकिर ना मनले तब तोरा संगे हमरा जबरदस्ती संबंध बनावे के पड़ि गइल हा। अब जाके रेल में कट चाहे हमरा प केस कर। हम त तोरा से मजा लेइये लेनीं। वोइसे हमरा प केसो करि के तू का करबे ? आउर तोर इजति निलाम होई। जो तोरा के हम आजाद कइनीं।’’ कहि के बिटेसवा फेनु जबरदस्ती बारली के गाल चूमि लेलस।
बारली हाथा बाई कइली त ऊ उनुकर गाल आपन नोह से चीरि देलस, ‘‘जब-जब ई लहरी नू त तू आपन ई बिटेस सइंया के इयाद करिहे।’’ फेनु बिटेसवा गोदाम आ दोकान के ताला खोलि देलस। बहरी के ठंडा-ठंडा हवा भीतरे आवे लागल। ऊ बारली के हाथ में एगो सेवई के पाकिट धरवलस, ‘ले, पेयार से बनइहे आ खइहें।’’
बारली खीस में सेवई ओकर मुंह प मारि देली आ ओरहनी उठा के एकझटका का साथे सड़क प आ गइली।

ओरहनी प जवन दाग लागल रहे ऊ त कवनो सर्फ-साबुन से छूटि जाई बाकिर अभी-अभी जवन दाग बारली प लागल हा ऊ कवन सर्फ-साबुन से छूटी ? कवनो धोबिया घाटो छूटी कि ना ?

बारली सड़क प खाड़ होके सोचली, ‘अब हम रेल में कटे जाईं, नदी में कूद जाईं कि घरे जाईं ?’

फेरू उनुकर मन में का जाने का आइल कि ऊ उहे हाल में गते – गते घरे के राह धइली।
घरे माई बारली के अइसन हाल देखि के हैरान-परेशान हो गइली।

बारली के सभ बार नोंचाइल, गाल चीरल, सभ कपड़ा जेने-तेने से फाटल, ओंठ लगे से खून बहत, समीज प खून के दाग, खलिहे गोड़ आउर ओरहनी सभ लेटाइल रहे।
माई समुझली बारली कवनो से लड़ाई – झगड़ा कइलसिया। काहे से कि ऊ मारे – पीटे में आगा रही।

माई उनुका के झकझोर के पूछली, ‘‘बारली, ई तू आपन कवन दसा बनवले बाड़े ? एहिजा से त नीके गइल रहिस। तू डेढ़ – दू घंटा बाद आवत बाड़े। कहवां रहिस ? कवनो से झगड़ा कइले हा का ?’’ माई एके हाली एतना बात पूछली बाकिर बारली के मुंह से एको शब्द ना निकलल।

ऊ ओहिजे भूंइया प गिरि गइली। माई पूछत रही आ बारली के पथराइल आंखि से लोर बहत गइल।
तबहीं ओहिजा नानी लाठी पकड़ले अइली। अइसे आपन सुन्नर नतनी के ई सूरत में देखि के ऊ कांपे लगली। उहो बारली से खूब पूछली।
तब बारली के ओंठ हिलल, ‘‘माई, ऊ दोकानदार बिटेसवा आपन राशन के गोदाम में हमार इजति लूट लिहलस…।’’
‘‘का……।’’ सुनते माई गश्ती से गिरि गइलीं। आ नानी के हाथ से लाठी छूटि गइल आ ऊ धड़ाम से सोफा सेट प गिरि गइली। जब ऊ चेतली त खूब रोये लगली।

ओह घरी लता पूड़ी छानत रही। एक प एक रोवल के आवाज सुनि के ऊ हाली से गैस बुता के बइठका देने दउड़ली।
बारली के ई रूप में देखि के उनुका अपना आंखि प बिश्वास ना भइल। उनुका कुछु शक बुझाइल। ऊ हाली से बारली लगे अइली बाकिर ऊ त असहीं भूंइया प गिरल रही। लता नानी से पूछली त ऊ खाली रोअत रही।
फेरू लता हाली से गिलास में पानी लिया के भउजी के मुंह प पानी के छिंटा मरली त ऊ होश में आवते चिचिया-चिचिया के खूब रोये लगली। फेरू ऊ बारली के मुंह प पानी के छिंटा मारि के उनुका के उठा के ठीक से बइठवली आ उनुकर समीज सोझ क के पूछली, ‘‘का भइल हा बारली ?’’

बारली गते से बोलली, ‘‘फुआ हमार इज….।’’
लता अभी आधे बात सुनली कि उनुका चक्कर आवे लागल आ गिरत – गिरत में ऊ टेबुल पकड़ि लेली । ना त उनुकर कपार फाटि जाइत। उहो बारली के दसा प आंखि फोरि-फोरि के रोये लगली।

बारली के पिताजी ड्यूटी से अइले। अइसे सभ केहूं के रोअल – पीटल देखि के उनुकर करेजा आधा हो गइल आ बारली के देखते जीऊ अटकि गइल। ऊ लता से पूछलन, ‘‘तू सभ अइसे रोवत काहे बाड़ू सन आ बारली के ई हाल ?’’
‘‘भइया, बारली के इजति लुटा गइल।’’ लता कहली आ उनुकर गालि प कस के एगो चमेटा पड़ल, ‘‘बोलबे हमार बेटी के बारे में अइसन। तू हमार बहिन नू हइस ?’’
‘‘भइया, ई सच ह….।’’ रो-रो के लता सभ बाति बता देली।
सुनते पिताजी के देहि के सभ खून सुखा गइल आ ऊ अलस्थ होके सोफा सेट प गिरले आ लोर के धार गिरे लागल।

बारली के दूनों बड़ भाई सरवन आ जीतन हंसत-बोलत घर में घुसले जा। अइसन देखि के पिताजी से सभ पूछि जानि के दूनों जना प पगलपन चहरि गइल। जीतन लाठी – डंटा लेके बहरी भागसु आ सरवन रो – रो के सभ देवी – देवता के मूरती – फोटो उठा के फेंके लगले, ‘‘साला ई भगवान ह। हमार बहिन के इजति लुटात देखते रहे । आजु सभ साला देबी – देवता के आगि लगा देब ।’’

माई सरवन के पकड़स आ लता जीतन के धरस। अइसन रोवल –पीटल सुनि के अगल – बगल के लोग दउड़ – दउड़ के बारली के घरे आइल। सभ केहूं दुखी होत रहे। दांते तरे अंगुरी दबावत रहे।

नानी पुरनिया रही। ऊ रेघा के रोवत रही, ‘‘आही रे रमवा, ई का भइल करमवा, हमार बबी के इजति लूट लिहलस ऊ जुलुमवा….।’’
दू – चारि गो आदमी पिताजी से कहले कि अइसे रोअला से कुछु ना होई, जाके ऊ हरमिया प केस कर।
बारली लता से उठत ना रही। लता, नानी आ माई से कहली, ‘‘तनी दूनों केहूं मिलि के बारली के उठाईं त। ई हमरा से उठत नइखे।’’
तबहीं नानी आ माई के करेजा चिरई लेखा बदलि गइल। ऊ लोग बारली के देने से मुंह फेरि लेली जा। लता कसहूं बारली के उठवली।
पिताजी आ सरवन लोर गिरावते बारली के उहे हाल में थाना ले गइले। जीतन डंटा लेके बिटेसवा के गइले खोजे।
जइसे-जइसे राति गहिरा होत रहे ओइसे-ओइसे बारली के खबर सभ केहूं के कानि में गरम लोहा अइसन पड़त गइल।

क्रमश :

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