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– डॉ. राकेश जोशी

गजलें

1.

अगर जंगल में रहना है तो डर क्या है

तेरा है हाथ सर पर तो फ़िकर क्या है

 

सफ़र क्या है, नदी से पूछकर आना

समंदर क्या बताएगा सफ़र क्या है

 

अँधेरे में बता मत तू कि है जगमग

उजाले में बता तेरा शहर क्या है

 

ख़बर वो है जो तुझको ख़ूब चौंका दे

अगर तुझको ख़बर है तो ख़बर क्या है

 

किसी फुटपाथ पर सोई ग़रीबी से

किसी मज़दूर से पूछो कि घर क्या है

 

ये बादल तो है अनपढ़ क्या बताएगा

फ़सल ही अब बताएगी ज़हर क्या है

 

2.

मैं कल सारे प्रश्नों के हल सोच रहा था

जीवन में थोड़ी-सी हलचल सोच रहा था

 

पूछ रहा था दरिया मुझसे हाल मेरा जब

मैं बस्ती की गलियों में नल सोच रहा था

 

गारे-वारे, कंकड़-वंकड़, पत्थर-वत्थर

कांटों की दुनिया में चप्पल सोच रहा था

 

तू शहरों में रहकर सोच रहा था जंगल

मैं जंगल में रहकर जंगल सोच रहा था

 

तुम सर्दी में कल भी सोच रहे थे फैशन

मैं तो कल भी केवल कंबल सोच रहा था

 

सोच रही है वो मेरे हाथों के छाले

मैं उसके पैरों में पायल सोच रहा था

  • एसोसिएट प्रोफेसर (अंग्रेज़ी), राजकीय महाविद्यालय, मजरा महादेव, पौड़ी (गढ़वाल), उत्तराखंड

मोबाइल: 9411154939

ई-मेल: [email protected]

 

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