♦️पटना :02/07/2022! साहित्य समाज का सिर्फ दर्पण ही नहीं,बल्कि मार्गदर्शक भी होता है! इसलिए हिंदी साहित्य की समृद्धि के लिए युवा साहित्यकार को गंभीर होने की जरूरत है l इस तरह की छोटी छोटी गोष्ठीयाँ हमारे साहित्य के परिमार्जन के लिए आवश्यक है!
साहित्य परिक्रमा के तत्वावधान में, गीतकार मधुरेश नारायण के निवास पर आयोजित साहित्य संगोष्ठी का सशक्त संचालन करते हुए, कवि -चित्रकार सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l संगोष्ठी के प्रथम सत्र में रवि श्रीवास्तव,अमृता सिंहा , सिद्धेश्वर मधुरेश नारायण ने अपनी अपनी लघुकथाओं का पाठ किया l जिस पर अपनी टिप्पणी करते हुए संस्था के अध्यक्ष मधुरेश नारायण ने कहा कि – पढ़ी गई लघुकथाएं संस्कृति, ऐतिहासिक परंपरा, मान्यता, कुरीति औऱ विषमता पर प्रहार करती हुई सकारात्मक संदेश दे जाती है l संगोष्ठी के अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि – वह साहित्य ही है जो हमारी सभ्यता संस्कृति का ज्ञान कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है!
दूसरे सत्र में शहर के एक दर्जन प्रतिनिधि कवियों ने, एक से बढ़कर एक गीत ग़ज़ल और छंदमुक्त कविताओं की प्रस्तुति दी l मधुरेश नारायण ने – गुजरा हुआ हर एक पल तेरे साथ ज्यूँ।,आरहा है याद मुझे बार-बार क्यूँ।/ नसीम अख्तर ने -चलते चलते उनका ख़ंजर रह गया,दिल का अरमाँ दिल के अंदर रह गया,साक़ीया जब जब हुई बारी मेरी,आते आते दौर-ए-साग़र रह गया!/ सिद्धेश्वर ने – छोड़ दिया मैंने, जाति -धर्म का गोरखधंधा l,शुक्रिया भाई मेरे जो,मुझे परजात करते हो !,महलों पर कहां दिख रहा, बादलों का डेरा ?,देखकर हमारी झोपड़ी, खूब बरसात करते हो?”/ लता परासर ने – हाय निवाला खानेवाला,गरीबों का बना रखवाला,मिल बांट जुगाली करता,है कोई लाल पकड़नेवाला!/ सीमा रानी ने -माँ,उस मन में भी कई हसरतेँ,करवट बदलती रहती है,जीवन के इस परिवर्तन मे,वो पल पल ढ़लती रहती है।”/ पूनम कतरियार ने — उठी लहरें, अंतहीन पीड़ा की, दर्द के मरोड़ उठें,,भरभरा-कर तन टूटा.हरसिंगार से झर-गए तुम! विभा रानी श्रीवास्तव – बेटे को मां के स्नेह की तड़प है,तो मां को बेटे के कंधे का सहारा जैसी कविता, गीत,गजल का पाठ किया l रवि श्रीवास्तव,अमृता सिन्हा,अभिलाष दत्ता,पूनम देवा, रंजना सिन्हा, बीना गुप्ता,आशा शरण आदि की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही l
♦️ प्रस्तुति :मधुरेश नारायण (अध्यक्ष: साहित्य परिक्रमा )