– सुमन पाठक
दो कविताएं
यह राष्ट्र एक अम्बर जैसा है
वीर सिपाही तारे हैं।
भारत माता को तो अपने
पुत्र प्राण से प्यारे हैं।
कितने तारे रोज डूबते हैं इस
नभ के अन्दर।
राष्ट प्रेम का फर्ज निभाने
वीर पुरुष
जो आते ।
माता पिता पुत्र पत्नी का मोह
छोड़ एक पल को।
राष्ट प्रेम के खातिर ही वो सिंह
पुरूष बन जाते।
सीमा पर हो या शहीद हो
शहर की नामी गलियों में।
उन्हें मारने वाले केवल बंधते
है हथकड़ियों में।
आतंकी गर जिन्दा पकड़ा जाये
तो उसको रखते हैं।
वर्षों वर्षों तक बस उसकी
खातिरदारी करते हैं।
चोर लुटेरे शातिर डाकू
हत्यारे और व्यभिचारी।
इनको भी जिन्दा रखने की
संविधान की लाचारी।
कैसे देश द्रोह मिट सकता
कैसे स्वस्थ समाज रहेगा।
अपराधी के मन में जब तक
कानून का थोड़ा भय न रहेगा।
न जेल हो न वेल हो
न तारीखों का पन्ना हो।
एनकाउंटर ही बस इनकी
सजा का एक हथकंडा हो ।
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हे गंगा धर से शिव शंकर
हे गंगा धर से शिव शंकर।
हे महादेव से गौरी वर ।
हे कैलाशी घट घट वासी,
हे त्रयंबकम से रामेश्वर।
बालेंदु भाव से नील कंठ ।
मुंडो की माल से शिव हर हर।
हे दुःख हर्ता से सुख कर्ता,
हे अविनाशी शशांक शेखर।
हे आशुतोष औघरदानी।
हे भोलेनाथ से वरदानी।
हे त्रिपुरारी से असुरारी ,
हे विश्वनाथ से विषपानी ।
हे डमरूधर करूणावतार ।
हे गुणातीत संसार सार।
कर दो कृपा से शिव शम्भू,
अर्पित करती हूं सुमन हार।
हे भाक्ति के आचार्य सुनो ।
भक्ति की शक्ति प्रदान करो ।
वैराग्य ज्ञान के, पर पर भी ।
ममता से निज मन मुक्त करो।
संसार सिन्धु में ये नैया
डगमग डगमग अब डोले है।
नैया टूटी पतवार छिन्न,
बस एक सहारा भोले हैं।।