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    –   विद्या शंकर विद्यार्थी

देखते अकशवा करेजवा हहरि जाता,
नइखे बरिसत, जलवा के धार रे बदरवा
खेतवा के रोपनी के गीतिया भुलाइल
बियवा अँकुरल आश के भतिया सुखाइल
रोअताड़े गाँव के खलार, रे बदरवा।
हमरे ना गँउआ के, बाड़े एगो बतिया
जीअता जवरियो हो सही के संसतिया
अँसुआ के चलता पनार,रे बदरवा।
खने चले पछुआ खने हो चले पुरवा
उड़ता बधरिया में जेठ जइसन धुरवा
छतिया में गड़ता लुआर रे बदरवा।
बरखे के नाज पर बेटी के दिन धइलीं
घात के ना आसरा रे बदरा से कइलीं
कइसे राखब धियवा कुँआर रे बदरवा।

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